परभणी के संत
श्री संत मोतीराम महाराज
संतो की भूमी परभणी जिले के अंतर्गत पालम तहसील के फलाग्राम में एक माहेश्वरी परिवार काकाणी के यहाँ श्री दौलतरामजी तथा माता रामकुंवरबाई के यहाँ दि. ९ अप्रैल १८६७, मंगलवार को अवतरण हुवा। पुर्व जन्म की अध्यात्मिक यात्रा पूर्ण करने वे इस धार्मिक सात्वीक परिवार में पधारे और बहनोई के यहां के व्यवहार से पिड़ीत होकर गृहस्थ जीवन त्याग अपने और जनकल्याण हेतु अपना उर्वरित जीवन लगाया और ग्राम-ग्राम गली गली फिर कर ईश्वर भक्ति, नाम स्मरण का महात्म किर्तन के माध्यम से समझाते हुए पुरा जीवन यापन किया और फलागांव में दि. २७ अगस्त १८६४ को उम्र के ९७ वें वर्ष में देह त्याग कर निजधाम को प्रयाण किया। हजारो लोगों ने उनके अनमोल वचन अपना कर अपने जीवन शैली में परिवर्तन किया और आज भी वही परम्परा चल रही है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु उत्साह मनाते है, हर ग्यारस को तो यहां मेला लगता है। हम माहेश्वरी समाज भाग्यशाली हैं जो हमारे समाज में ऐसे पुण्यवान आत्मा का जन्म हुआ, जाती का भेदभाव मिटाने का अविरत प्रयास उनका उल्लेखनीय है। ‘मैं भारत हूँ’ पत्रिका परिवार नतमस्तक हैं उनके प्रति, प्रतिवर्ष उनका जन्म और समाधी दिन उत्सव रुप में मनाकर उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। प.पू. संत श्री महात्माजी महाराज, गुंज (संस्थान) परभणी ही नहीं, अपितु सकल महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक आदि राज्यों में प.पू. महात्माजी महाराज भारतीय समाज में चिर परिचीत हैं। परभणी जिले के जिंतूर तहसील के ग्राम वरुड (नृसिंह) में जन्में श्री शंकरलालजी लादूरामजी शर्मा अपना बाल्यकाल बिताकर उम्र के २०वें वर्ष पश्चात ही आध्यात्मिक साधना में रत हो गये, पारिवारीक जिम्मेवारी वहन करते हुए भी उन्होंने तप-साधना को प्राधान्य दिया। जीवन संगीनी के देहांत के पश्चात उन्होंने गृहस्थाश्रम का परित्याग कर नासीक के कालाराम मंदिर में तपश्चर्या पुरी की, इसके पश्चात वहां से ‘पाथरी’ लौटकर गोदावरी तट पर स्थित गुंज ग्राम में लगभग ५० वर्ष तक तपस्या की। तपस्या एवं साधना के परिणाम स्वरुप उनका सहस्त्रदल (ब्रह्मांड) खुल गया। सन १९६७ को महाशीवरात्री के परभणी के संत पावन दिन पर अपनी जीवनयात्रा पुरी की। आप रामायण के अभ्यासक व भक्त रहे, पुरे परिसर में रामायण का निरंतर पठन शुरु करवाया, अनेक भक्तों को दुःख, दारिद्र निवारण करने के उपाय दिये, उनकी पुण्यतिथी पर क्षेत्र भक्तों का बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें श्रीरामचरित्र मानस का अखंड पारायण होता है। वर्तमान में श्री रमेशजी भाई शर्मा जो महात्माजी के सुपौत्र है वे महात्माजी के बताए गए निर्देशों पर महात्माजी के कार्य को सुचारन ढंग से वहन कर रहे हैं। केशवराज बाबा महाराज ‘पाथरी’ से नजदीक ‘सेलू’ गांव में साईंबाबा के गुरु केशवराज महाराज मतलब बाबासाहेब महाराज का मंदिर है, मानते हैं कि केशवराज महाराज ही साईंबाबा के गुरु थे। गोविंद दाभोलकर की किताब और १९७४ में साईं संस्थान की छपी साई-चरित्र के आठवें संस्करण में ये बात लिखी हुई है कि साईं बाबा ‘पाथरी’ में पैदा हुए थे।
