नूतन वर्ष का अभिनंदन कराता है गुड़ी पड़वा

‘गुड़ी पड़वा’ मुख्य रूप से मराठी समुदाय में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है, इस पर्व को भारत के अलग-अलग स्थानों में अलग नामों से जाना जाता है। भारत के अलग-अलग प्रदेशों में इसे उगादी, छेती चांद और युगादी जैसे कई नामों से जाना जाता है, इस दिन घरों को स्वस्तिक से सजाया जाता है, जो हिंदू धर्म में सबसे शक्तिशाली प्रतीकों में से एक है। यह स्वास्तिक हल्दी और सिंदूर से बनाया जाता है, इस दिन महिलाएं प्रवेश द्वार को कई अन्य तरीकों से सजाती हैं और रंगोली बनाती हैं, माना जाता है कि घर में रंगोली नकारात्मकता को दूर करती है। ‘मैं भारत हूँ’ के प्रबुद्ध पाठकों को बताते हैं कि ‘गुड़ी पड़वा’ के इतिहास और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में:
गुड़ी पड़वा का महत्व
‘गुड़ी पड़वा’ को अलग-अलग जगहों पर अलग रूपों में चिन्हित किया गया है। कई जगह इसे नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है, ऐसा माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। एक मान्यता के अनुसार सतयुग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी, महाराष्ट्र में इसे मनाने का कारण मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध में विजय से है। माना जाता है कि उनके युद्ध में विजयी होने के बाद से ही ‘गुड़ी पड़वा’ का त्योहार मनाया जाने लगा। ‘गुड़ी पड़वा’ को रबी की फसलों की कटाई का प्रतीक भी माना जाता है।
गुड़ी पड़वा का अर्थ
‘गुड़ी पड़वा’ नाम दो शब्दों से बना है- ‘गुड़ी’ जिसका अर्थ है भगवान ब्रह्मा का ध्वज या प्रतीक और ‘पड़वा’ जिसका अर्थ है चंद्रमा के चरण का पहला दिन, इस त्योहार के बाद रबी की फसल काटी जाती है क्योंकि यह वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। गुड़ी पड़वा में ‘गुड़ी’ शब्द का एक अर्थ ‘विजय पताका’ से भी है और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि है, यह त्यौहार चैत्र (चैत्र अमावस्या की तिथि) शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि मनाया जाता है और इस मौके पर विजय के प्रतीक के रूप में गुड़ी सजाई जाती है। ज्योतिष विद्या की मानें तो इस दिन अपने घर को सजाने और गुड़ी फहराने से घर में सुख समृद्धि आती है और पूरे साल खुशहाली बनी रहती है, यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है।
गुड़ी पड़वा का इतिहास
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि ‘गुड़ी पड़वा’ के दिन भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी, इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने दिन, सप्ताह, महीने और वर्षों का परिचय दिया था। उगादि को सृष्टि की रचना का पहला दिन माना जाता है और इसी वजह से ‘गुड़ी पड़वा’ पर भगवान ब्रह्मा की पूजा करने का विधान है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इसी दिन भगवान श्री राम विजय प्राप्त करके वापस अयोध्या लौटे थे, इसलिए यह विजय पर्व का प्रतीक भी है।
गुड़ी पड़वा की पूजन विधि क्या है?
इस पावन दिन के अवसर पर लोग सुबह उठकर बेसन का उबटन और तेल लगाते हैं और इसके बाद वह प्रातःकाल ही स्नान करते हैं, जिस स्थान पर लोग ‘गुड़ी पड़वा’ की पूजा करते हैं, उस स्थान को बहुत ही अच्छी तरह से स्वच्छ एवं शुद्ध किया जाता है, इसके बाद लोग संकल्प लेते हैं और साफ किए गए स्थान के ऊपर एक स्वास्तिक का निर्माण करते हैं और इसके बाद बालों की विधि का भी निर्माण किया करते हैं।
इतना करने के बाद सफेद रंग का कपड़ा बिछाकर हल्दी-कुमकुम से उसे रंगते हैं और उसके बाद अष्टदल बनाकर ब्रह्मा जी की मूर्ति को भी स्थापित किया जाता है और फिर विधिवत रूप से पूजा अर्चना की जाती है। आखिर में लोग गुड़ी यानी की एक झंडे का निर्माण कर पूजन स्थल पर स्थापित करते हैं। – मैंभाहूँ

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