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सिंधी अनमोल रतन
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फरवरी २०२४
मेरे हृदयवासी आचार्य विद्यासागर जी मोक्षगामी हो गए
१८ फरवरी २०२४ की सुबह ही संपादकीय लिख रहा था, मेरी धर्मपत्नी संतोष मंदिरजी के दर्शन करके
आई और कहा कि आपके गुरुवर विद्यासागर जी मोक्षगामी हो गए, यह सुनकर कुछ पल ऐसा लगा कि
सब कुछ थम सा गया, भाव विभोर हो गया, उनके साथ बीते दर्शनार्थ पल आंखों के सामने आ गए और
चिरस्थिर हो गए।
जब-जब विद्यासागर जी के मुझे दर्शन प्राप्त हुए, जीवन का नया अध्याय शुरू होता गया, कुछ करने को
बल मिलता गया। कहते थे बिजय कुमार! ना मैं तुम्हें साधु संत के रूप में देखना चाहता हूं, ना कुछ और,
मैं तो चाहता हूं कि तुम भारत मां के लाडले बनो और ‘भारत नाम सम्मान’ के लिए कार्य करो।
जब मैं भारत के दक्षिण क्षेत्र यानी तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु की १९ दिनों की
यात्रा ‘भारत की एक राष्ट्रभाषा ‘हिंदी’ बने’ के लिए की सोची, विद्यासागर जी के दर्शन किए, आशीर्वाद
मिला, यात्रा सफल हुई लेकिन ‘हिंदी’ संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा नहीं घोषित हो पाई तो गुरुदेव ने कहा
कि उदास होने की कोई जरूरत नहीं है, कार्य करते जाओ और अपने ‘भारत’ को हिंदी हो या विश्व की
कोई भी भाषा हो, केवल ‘भारत’ ही बोला जाए के लिए कार्य करो, यहां तक कहा कि ‘भारत’ की ज्योतिष
में कहां इंडिया बैठा है पता लगाओ और ‘भारत’ से इंडिया दूर करने का प्रयास करो, क्योंकि एक देश
के २ नाम कदापि नहीं हो सकते।
संत प्रवर महातपस्वी विद्यासागर जी के जब-जब दर्शन मिले, उनकी नज़रें व ललाट की चमक मुझे आत्म
विभोर कर देता, ऐसे लगता की घंटों ही नहीं दिनों तक उनके चरणों के समक्ष बैठा रहूं, पर ऐसा संभव
कहां हो पाता, उनके दर्शनार्थ तो सैकड़ों नहीं, लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की लाइन लगी रहती थी,
उनके आशीर्वाद से जीवन को ऊर्जा मिलती रही, अब ऐसा लग रहा है कि कौन मुझे नए गंतव्य बतायेगा।
आज भले ही मेरे गुरुवर मेरे पास नहीं है पर उनका आशीर्वाद व निर्देश मेरे साथ है, जब तक उनके
जीवन की इच्छा ‘हिंदी’ बने भारत की राष्ट्रभाषा और ‘भारत को केवल ‘भारत’ ही बोला जाए’ इंडिया
नहीं, अभियान सफल नहीं होगा, चैन से नहीं बैठूंगा और ना ही किसी भी भारतीय को चैन से बैठने दूंगा।
प्रस्तुत अंक गंगासागर, विश्वकर्मा जयंती व असम का एक नगर ‘बिजयनगर’ की जानकारी व संक्षिप्त
इतिहास के साथ आपके हाथों में है, कृपया जरूर बताएं कि कैसा लगा?
मन उदास है, गुरुवर नहीं मेरे पास है
बस आपसे ही आस है, गुरुवर की बची प्यास है
‘हिंदी’ बने राष्ट्रभाषा, ‘भारत’ केवल ‘भारत’ रहे
गुरुवर की इच्छा पूरी होगी एक दिन,
यही मुझे विश्वास है।
मेरे हृदयवासी
आचार्य विद्यासागर जी मोक्षगामी हो गए
राष्ट्र की परिभाषा
भाव-भूमि-भाषा