३० मार्च १९४९ का सूर्योदय लेकर आया
एक नया सवेरा राजस्थान प्रदेश के लिए

राजस्थान यानि कि राजपूतों का स्थान, देश के विकास में राजस्थान और राजस्थानियों का अमूल्य योगदान रहा है। चाहे वह उद्योग धन्धे के क्षेत्र में हो या साहित्य व सांस्कृतिक विकास के क्षेत्र में। जाहिर तौर पर राजस्थान की कुछ खूबियाँ है, अपनी इन्हीं खूबियों के कारण ही हवेलियों का यह प्रदेश पुरे दुनिया में आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। ३० मार्च राजस्थान दिवस के उपलक्ष्य में राजस्थान की इन्ही खूबियों पर एक बार फिर से प्रकाश डालने की कोशिश में ‘मैं भारत हूँ’ पत्रिका परिवार द्वारा
प्रस्तुत राजस्थान परम्पराओं का संक्षिप्त विवरण, आप सब के सामने…
नई किरण
३० मार्च १९४९ का सूर्योदय लेकर आया एक नया सवेरा, जब भारत के मानचित्र पर राजस्थान राज्य का उदय हुआ। भारत की स्वतंत्रता के बाद देशी राज्यों के विलय और उनकी व्यवस्था करने की समस्या समाधान चाहती थी। ५ जुलाई १९४७ को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासती विभाग का कार्यभार संभाला, राजाओं के प्रति उनकी सदाशयता मित्रभाव तथा सम्मानजनक व्यवहार ने राजाओं को प्रभावित किया। सरदार पटेल ने अपने विश्वस्त साथियों के सहयोग व परामर्श से सर्वप्रथम छोटे
राज्यों की ओर ध्यान दिया, उन्होंने अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली राज्यों को मिलाकर ‘मत्स्य संघ’ के नाम से पहला राज्य गठित किया, जिसका उद्घाटन १८ मार्च १९४८ को केंद्रीय खान मंत्री एन.वी. गाडगिल ने किया। महाराजा धौलपुर उदयभान सिंह राजप्रमुख तथा ‘अलवर’ के शोभाराम प्रधानमंत्री बनाए गए।
एकीकरण के दूसरे चरण में २५ मार्च १९४८ को ‘कोटा’ में दूसरे संघ का निर्माण हुआ। उदयपुर महाराणा ने भी संघ में शामिल होने पर सहमति दे दी।
१८ अप्रैल १९४८ को ‘उदयपुर’ में संयुक्त राजस्थान संघ का उद्घाटन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने किया, इस संघ में उदयपुर के साथ कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, शाहपुरा व टोंक मिलाए गए, इस संघ के राजप्रमुख मेवाड़ के महाराणा भोपालसिंह तथा प्रधानमंत्री माणिक्य लाल वर्मा बनाए गए। १९ जुलाई १९४८ को लावा चीफशिप ‘जयपुर’ राज्य में तथा कुशलगढ़ चीफ-शिप ‘बांसवाड़ा’ राज्य का अंग होने से राजस्थान में विलीन कर दिया गया, इस समय तक तीन बड़ी रियासतोंजयपुर, जोधपुर व बीकानेर के अलावा लगभग सभी राज्य एकता की डोर में बांध लिये गए थे। जून १९४८ में इन सभी रियासतों को कांग्रेस ने संगठित होकर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस का गठन किया, जिसके प्रथम अध्यक्ष गोकुलभाई भट्ट निर्वाचित हुए। १९४८ में जयपुर में हुए अ.भा. कांग्रेस के अधिवेशन में सरदार पटेल ने जयपुर, जोधपुर व बीकानेर के नेताओं तथा अन्य नेताओं से वृहद राजस्थान के निर्माण के संबंध में वार्ता कर उन्हें विश्वास में लिया। राजाओं से भी अलग-अलग स्तर पर वार्ता कर, उन्हें तैयार किया गया। केंद्र शासित जैसलमेर को भी राजस्थान में विलय का निर्णय कर लिया गया। उदयपुर के संघ में शामिल हो जाने से जयपुर, जोधपुर और बीकानेर के विलय का मार्ग प्रशस्त हो गया, इन रियासतों के विलय के साथ उदयपुर के महाराणा को उनके सम्मान के अनुकूल महाराज प्रमुख तथा जयपुर महाराजा को राजप्रमुख तथा कोटा महाराज को उप राजप्रमुख बनाया गया। राजाओं के प्रिवीयर्स भी राज्य की आय के अनुरुप निश्चित किए गए। राजाओं के साथ उनकी निजी संपत्ति के निर्धारण के साथ संधि की गई। ३० मार्च १९४९ (नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २००६) को रेवती नक्षत्र, इन्द्र योग में प्रात: १० बज कर ४० मिनट पर भारत के उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जयपुर के राजप्रसाद के ऐतिहासिक दरबारे-आम में वृहद राजस्थान का उद्घाटन किया गया तथा राजप्रमुख पद के लिए महाराजा जयपुर सवाई मानसिंह को शपथ दिलाई गई। राजप्रमुख ने कोटा के महाराव को उप राजप्रमुख पद तथा पं. हीरालाल शास्त्री को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। उद्यमशीलता- कुरजा ए म्हारा भंवर मिला दीजे रे..
हर बार सर्दियां लगते ही प्रवासी पक्षी ‘कुरजा’ जब प्रदेश के धोरों पर आती हैं तो विरह वेदना झेल रही स्त्री यही गीत गाती है। परदेश कमाने गए इन पूतों ने आज अपनी मेहनत और उद्यमशीलता से देश-दुनिया में यह साबित किया है कि प्रकृति जहां दिल खोल कर नहीं बसती हो वहां के वाशिंदों को भी उद्यमशीलता और मेहनत संपन्न बना सकती है, इसीलिए चुरु से उठे एक शख्स में लक्ष्मी ने निवास कर लिया। मारवाड़ी मित्तल ने दुनियाँ के अमीरों में जगह बनाई, जबकि दूसरी तरफ जमनालाल बजाज को गांधी जी अपना पांचवां बेटा मानते थे। आज ‘बजाज’ दुपहिया वाहन बनाने वाली कंपनियों में दुनिया में अव्वल है। बिड़ला, बांगड़, डालमिया, मोदी जैन वगैरह कुछ ऐसे नाम है जो दुनिया में किसी परिचय के मोहताज नहीं। मारवाड़ी उद्योगपतियों को लेकर अगर आप सोचते हैं कि वे गुवाहाटी, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद, नेपाल या महाराष्ट्र तक देश की चारों दिशाओं में पैâले हैं तो आपको गलतफहमी है। केन्या, दक्षिण अप्रâीका, दुबई, अमेरिका, सिंगापुर और यूरोप का रुख कीजिए, ‘मारवाड़ी’ व्यवसायी आपको दुनिया के हर कोने में मिलेंगे और हर जगह उन्होंने अपनी उद्यमशीलता से दौलत तो कमाई ही है अपनी मृदुभाषिता Dाौर व्यवहार से दोस्त भी कमाए हैं।
‘सेबी’ के पूर्व अध्यक्ष के अनुसार देश का लगभग एक तिहाई पैसा मारवाड़ी उद्यमियों की जेब में है और वह दिन दूर नहीं जब दुनिया की दौलत का बड़ा हिस्सा इन्हीं की जेब में होगा तब राजस्थान को ‘धनीस्तान’ के खिताब से नवा़जा जायेगा।
रत्न, ज्वैलरी व हस्तशिल्प हां सा म्हारी रुणक-झुणक पायल बाजे सा…
घूमर की इन मशहूर पंक्तियों में महिलाओं की प्यारी पायल की आवाज समाहित रहती है तो फिर इस पायल को गढ़ने वाले कारीगरों को वैâसे भूलाया जा सकता
है। सुन्दर गहने गढ़ने में प्रदेश के जौहरियों का कोई सानी नहीं है, अकेले जयपुर से जहां पिछले बरस १२०० करोड़ रुपयों से भी ज्यादा के गहने निर्यात हुए तो
जोधपुर से इतनी ही कीमत का हस्तनिर्मित फर्नीचर विदेश भी गया।
राजस्थान कारीगरों के काम को पूरी दुनिया इज्जत से देखती है, गहने या फर्नीचर ही राजस्थान के कारीगरों को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर नहीं लाते बल्कि यहां की ब्लू पॉटरी, लोक चित्रकला, बंधेज, साफों, जोधपुरी कोट, हस्तशिल्प, चांदी के काम, दरियों-कालीनों, जूतियों, ब्लॉक प्रिंटिंग, कढ़ाई और मीनाकारी की भी दुनिया दीवानी है। दुनिया के आधे क्रिकेटर जोधपुरी मोजड़ी पहन चुके हैं। बंधेज के विशाल मात्रा में ऑर्डर आते हैं जोधपुर के बंधेज कारीगरों द्वारा निर्मित अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अप्रâीका, मध्यपूर्व और चीन तक राजस्थानी बंधेज जाते हैं, अब हमारे ज्यादातर विदेशी ग्राहक फर्नीचर को अपने पूरे मकान की डिजाइन के हिसाब से मंगाते हैं। जोधपुर के लोहे के फर्नीचर, किशनगढ़ी चित्रों और जयपुरी गहनों के दीवाने दुनिया भर में मौजूद हैं।
दर्शनिय
केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश…
बाहर से आने वाले सैलानियों के लिए भारत आने का सबसे बड़ा आकर्षण ‘राजस्थान’ ही होता है, यही कारण है कि भारत आने वाला हर तीसरा विदेशी पर्यटक प्रदेश का रुख जरुर करता है।
२०२२ को देश में आने वाला विदेशी सैलानी में से हरेक चौथा सैलानी राजस्थान आया, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इंग्लैंड में बीते दिनों आयोजित विश्व पर्यटन मेले में ज्यादातर सैलानियों ने ताजमहल को राजस्थान में बताया। पर्यटन विभाग के सहायक निर्देशक बताते हैं कि आम हो या खास, हर तरह का सैलानी यहां के रंगों, शिल्प, स्थापत्य, महलों, हवेलियों, धोरों, झीलों और जानवरों को देखने जरुर आता है, यहां एक तरफ जहां लिज हर्ले ब्याह रचाती है तो दूसरी तरफ पुष्कर के घाट पर अमरीकी बाला कोलीना कालबेलिया नृत्य भी करती है।
‘पैलेस ऑन व्हील्स’ के महंगे टिकट एडवांस में बिकते हैं, वहीं लग्जरी ऑन व्हील्स में भी जगह नहीं मिलती। पुष्कर समारोह, हाथी समारोह, मरु महोत्सव, मारवाड़ समारोह, ‘मेरा राजस्थान’ परिवार द्वारा आयोजित ‘आपणों राजस्थान, मुंबई अब दुनिया भर में मशहूर हो चुके हैं। विदेशी पर्यटक हमारे प्रदेश को देख कर चकित रह जाते हैं और यही वजह है कि लगभग ७० देशों के पर्यटक प्रदेश में आते हैं और इनकी तादाद हर साल बढ़ती ही जा रही है। व्यापक प्रचार और सरकारी संरक्षण के
बावजूद, ‘राजस्थान’ को अभी भी केरल जितने पर्यटकों की दरकार है, अगर सरकार केरल जैसा प्रचार व संरक्षण प्रदान करे तो स्थिति और बेहतर हो सकती है।
खनिज संपदा
दुबई का एक अमीर जब ‘जोधपुर’ घूमने आया तो उन्हें पता चला कि उनके महल के बाहर लगा पत्थर राजस्थान से पहुँचा है। राष्ट्रपति भवन हो या संसद, राजस्थानी पत्थर के बिना उनकी दीवारें कहाँ बनती हैं! दुनियाँ भर में मशहूर ताजमहल राजस्थानी मकराने के संगमरमर से बना है। तांबा, जस्ता, लाइमस्टोन, सैंटस्टोन, वैâमिकल्स वगैरह
प्रदेश के सीने से निकल कर दुनिया भर में जाते हैं। स्कॉटलैंड की तेलखोजी कंपनी वैâयर्न एनर्जी ने जैसे ही बाड़मेर में तेल खोजा, लंदन स्टॉक एक्सचेंज में उसके शेयर्स के वारे-न्यारे हो गए। राजस्थान को खनिजों का अजायब घर कहा जाता है। जैसलमेर का लाईमस्टोन दुनिया भर में निर्यात होता है। राजस्थान से केमिकल्स भी ज्यादातर निर्यात होते हैं। वैâयर्न एनर्जी की तेल खोज के बाद ‘राजस्थान’ खनिज संपदा के अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर नजर आने लगा है। वैâयर्न के बाद वेनेजुएला की कम्पनी भी ‘जैसलमेर’ में गैस की खुदाई में सहयोग कर रही है और प्रदेश के नए कुओं पर दुनिया भर की बड़ी तेल कम्पनियों की नजर गड़ी हुई है।
पशुधन
गायां ने चरावती गोरबंद गूंथियो…
ऊंट के लिए अभी भी ऊन के टुकड़े, कौड़ियां, शीशे और धागे इकट्ठा कर, मरुस्थल की औरतें गोरबंद गूंथ ही लेती हैं ‘गोरबंद’ यानी ऊंटों का गहना। ऊंट यानी मरुस्थल का गहना। चांदनी रात में थार के धोरों में वैâमल सवारी की इच्छा दुनिया भर के सैलानी रखते हैं। हालांकि ऊंट के रेवड़ और उनकी तादाद दिनब दिन घटती जा रही है, मगर ऊंट ही प्रदेश के सच्चे राजदूत हैं और दुनिया भर में प्रदेश की पहचान भी, पशुधन के लिहाज से उत्तरप्रदेश के बाद राजस्थान देश में दूसरे स्थान पर है क्योंकि प्रदेश में साढ़े पांच करोड़ से भी ज्यादा मवेशी इस वक्त मौजूद हैं, हमारी गायों के घी में कोलेस्ट्रॉल कम होता है। राजस्थानी भेड़ों की ऊन से बने पट्टू-शॉल-दुशाले दुनिया भर में मशहूर हैं। मालावी नस्ल के घोड़ों की स्वामी भक्ति और क्षमता दुनिया भर में मशहूर है। ‘मारवाड़ी घोड़े को अगर प्यार मिल जाए तो वह हवा के भरोसे भी जी लेगा’ अपनी अनूठी ताकत के कारण आज अमेरिका और यूरोप में मारवाड़ी या मालाणी नस्ल के घोड़ों के दीवाने बढ़ते जा रहे हैं।
हर साल पुष्कर, नागौर, झालरापाटन और दिलवाड़ा के पशुमेलों में राज्य के स्पंदन और पशुओं से इस प्रदेश के अनूठे जुड़ाव को महसूस करने वाले लाखों विदेशी पर्यटक आते हैं, विदेशियों में हाथी समारोह और पुष्कर समारोह के लोकप्रिय होने के कारण ही पशुओं से इन पर्यटक मेलों का सीधा जुड़ाव है।
राजस्थान विशेष :
१) उद्योगपतियों की सूची में आज भी शिखर पर राजस्थानी ही हैं। बात लक्ष्मीनिवास मित्तल की हो या फिर बजाज, बिड़ला, बांगड़, मोदी, जैन की, हर जगह राजस्थानियों ने अपनी श्रेष्ठता के झंडे गाढ़े हैं।
२) राजस्थान विदेशी सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है, यहाँ पर्यटन नित-नई ऊचाईयों को छू रहा है, यहां की स्थापत्य कला की बात हो या फिर संस्कृति, महल, हवेलियों की, हर कोई एक बार यहां आकर दुबारा आने की इच्छा रखता है।
३) फिल्म टाइटैनिक की हीरोइन वैâट विस्लेट हों या फिर हॉलीवुड की धड़कन एंजेलिना जोली जैसी विश्वविख्यात सेलेब्रिटीज, अगर राजस्थान से गहने खरीदते हैं तो बाकि लोगों को राजस्थान की ज्वैलरी कितनी आकर्षित करती होगी।
४) मारवाड़ी घोड़ों की बात हो या फिर नागौर के तंदुरुस्त और विश्वविख्यात बैलों की, पशुधन में राजस्थान का कभी कोई शानी नहीं रहा, तभी तो यहां के पशु मेलों का आकर्षण विदेशियों को भी मरुधरा तक खींच लाता है। ‘ऊंट’ तो राजस्थान की विशेष पहचान रहा है।
५) राजस्थान को खनिजों का अजायबघर भी कहा जाता है, दुनियाँ भर में मशहूर संगमरमर हो या फिर तांबा, जस्ता और तेल हर महकमे में राजस्थान ने अपनी छाप छोड़ी है।
६) राजस्थान की हस्तशिल्प कला को देखकर तो हर कोई चकित रह जाता है। रत्न आभूषणों में राज्य का खास स्थान है। लाल बंधेज की चुनरी के बगैर दुल्हन का श्रृंगार अधूरा है, जोधपुरी कोट, मोजड़ी और साफे के बगैर दुल्हा भी नहीं जंचता तो है न ‘राजस्थान’ की विश्व में आन-बान व शान, तभी तो विश्व में है अपने राजस्थान की पहचान।

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