मातृशक्ति का सम्मान – समय की मांग बढ़ते नारी अपराध रोकने के लिए

संस्कृति के महान आदर्शो से युवकों को रूबरू कराने की जरूरत सदाचारी व मर्यादित जीवन बने जीने का आधार

भारतीय सनातन व संस्कृति के आधार गंगा, गाय व तुलसी को जहां माँ के रूप में पूजा जाता है, जहां कन्या को माँ दूर्गा के रूप में पूजा जाता है, वहां बढते नारी अपराध-संस्कृति पतझड़ के आसार दिखने लगते हैं। संस्कृति के महान आदर्श इस पतझड़ को बसंत में बदलने की शक्ति रखते है। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता- भारतीय दर्शन का मूल मंत्र रहा है। भारतीय संस्कृति व सभ्यता में नारी को हमेशा सम्मान, पवित्रता वपावनता के साथ देखा है, हमारी महान सनातन संस्कृति में नारी सम्मान व सदाचार का बड़ा महत्व है:

१)      मातृवत परदारेषु पर द्रव्येषु लोष्ठवत्।
         आत्मवत सर्व भूतेषु च: पश्यति सदपण्डित:।
परायी स्त्रियों में माता, बहन, बेटी का भाव, पराये धन में निर्लोभता का भाव, दुसरों में अपने जैसे सुख-दुख का भाव पवित्र करने के साधन है।
२)      आचाराल्लभते आयु: सदाचारी व्यक्ति का आयुर्बल बढ़ता है।
३)       हे प्रभो ददता संगमेमहि, अघ्नता संगमे महि, जानता संगमेमहि।
           हे ईश्वर हमे अच्छी संगति दे, ज्ञानी की संगती दे।

संस्कृति के रक्षक

आन-मान, मर्यादो, स्वाभिमान के प्रतीक पराक्रमी वीर महाराणा प्रताप के वीर पुत्र अमर सिंह ने युद्ध ने युद्ध भूमि में मुगल सेनापति अब्दुल रहीम खां को परास्त कर दिया। उन्होंने तैश में आकर मुगल सरदारों के साथ ही मुगलों के हरम को भी बंदी बना लिया। महाराणा प्रताप को जब यह समाचार मिला तो वह रूग्णावस्था में ही युद्ध क्षेत्र में जाकर अमर सिंह पर गरज पड़े, अमर सिंह ऐसा नीच काम करने से पहले तू मर क्यों नहीं गया। हमारी भारतीय संस्कृति को कलंकित करते तुझे लाज न आई?
राणा अमर सिंह पिता के समक्ष लज्जित मुद्रा में खड़े रहे। महाराणा प्रताप ने तत्काल मुगल हरम में पहुंचकर बड़ी बेगम को प्रणाम करते हुए कहा-बड़ी बी साहिबा, जो सिर शहंशाह अकबर के समक्ष नहीं झुका, मैं आपके सामने झुकाता हूँ। मेरे पुत्र अमर सिंह से जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करें, हमारे लिए स्री पूजनीय है, आप लोगो को बंदी बनाकर उसने हमारी संस्कृति का अपमान किया है, ऐसा ही सम्मान वीर शिवाजी ने अपने हारे हुए दुश्मन की रानी को दिया था।

मातृत्व की विजय

शिकागो (अमेरिका) के विश्वधर्म-सम्मेलन से लौटते समय स्वामी विवेकानन्द धर्मप्रचार के सिलसिले में सन् १८९४-९५ई. में युरोप का भ्रमण करते हुए जब फ्रांस पहुंचे तो वहाँ पाश्चात्य संस्कारों वाली एक संभ्रान्त फ्रांसीसी सुन्दर युवती ने उनके व्यक्तित्व तथा ओजस्विता से प्रभावित और आकर्षित हो स्वामी से समय माँगकर एकान्त में उनसे विवाह करने की अभिलाषा निवेदित की, विवेकानन्दजी उसके इस अविवेक और दु:साहस पर आश्चर्यचकित हो गये, किंतु उन्होंने बड़े धैर्य संयम स्वर से उससे प्रश्न किया-तुम मुझसे विवाह क्यों करना चाहती हो? युवती का उत्तर था-इसलिये कि मैं आप-जैसा पुत्र अपने लिये चाहती हूँ, सुनते ही स्वामीजी ने तुरंत समाधान किया-तब तो तुम मुझे ही अपना पुत्र मान लो, तुम मेरी माँ हो, माँ!

जिस समय अर्जुन इन्द्रपुरी में रहकर अस्त्र-विद्या और गान्धर्व-विद्या सीख रहे थे, एक दिन इन्द्र ने सभा में अर्जुन को उर्वशी की ओर निर्निमेष नेत्रों से देखते हुए पाया था, अत: अर्जुन को उर्वशी के प्रति आसक्त जानकर उन्होंने रात्रि के समय उनकी सेवा के लिये वहाँ की उस सर्वोच्च अप्सरा उर्वशी को उनके पास भेजा। उर्वशी अर्जुन के रूप और गुणों पर पहले से ही मुग्ध थी, वह इन्द्र की आज्ञा से खुब सज-धजकर रात्रि में अर्जुन के पास गयी। अर्जुन उर्वशी को रात्रि में अकेले इस प्रकार नि:संकोच भाव से अपने पास आयी देख सहम गये, उन्होंने शीलवश अपने नेत्र बन्द कर लिये और उर्वशी को माता की भाँति प्रणाम किया। उर्वशी यह देखकर दंग रह गयी, उसे अर्जुन से इस प्रकार के व्यवहार की आशा नहीं थी, उसने अर्जुन के प्रति अपना मनोभाव स्पष्ट प्रकट किया, तब अर्जुन अत्यन्त लज्जित हो गये और हाथों से दोनों कान मुँद कर बोले-देवी! तुम जैसी बात कह रही हो, उसे सुनना भी मेरे लिये बड़े दु:ख का विषय है, मैंने जो देव सभा में तुम्हारी ओर एकटक दृष्टि से देखा था, उसका एक विशेष कारण था, वह यह कि तुम ही हमारे पूरूवंश की जननी हो, इस पूज्य भाव को लेकर ही मैंने वहाँ तुम्हें देखा था। अनघे! मेरी दृष्टि में कुन्ती, माद्री और शचीका का जो स्थान है, वही तुम्हारा भी है। तुम पूरूवंश की जननी होने के कारण आज मेरे लिये परम गुरू स्वरूप हो। वरवर्णिनि! मैं तुम्हारे चरणों में मस्तक रखकर तुम्हारी शरण में कहता हूँ, तुम लौट जाओ, मेरी दृष्टि में तुम माता के समान पूजनीया हो और तुम्हें पुत्र के समान मानकर मेरी रक्षा करनी चाहिए।
यह सुनकर उर्वशी क्रोधित हो गयी और अर्जुन को शाप देते हुए बोली- अर्जुन! देवराज इन्द्र के कहने से मैं तुम्हारे घर पर आयी और कामबाण से घायल हो रही हूँ फिर भी तुम मेरा आदर नहीं करते, अत: तुम्हें स्त्रियों के बीच में सम्मानरहित होकर नर्तकी बनकर रहना पड़ेगा, तुम नपुंसक कहलाओगे।
जब इन्द्र को यह बात मालुम हुई, तब उन्होंने अर्जुन की प्रशंसा की और कहा-यह शाप तुम्हें वरदान का काम देगा। अज्ञातवास के समय तुम्हारे छिपने में सहायक होगा, उसके बाद तुम्हें पुन: पुरूषत्व प्राप्त हो जाएगा।
ध्यान देना चाहिए कि अर्जुन ने उर्वशी का शाप तो स्वीकार कर लिया, किंतु उसके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। अर्जुन का यह ब्रह्मचर्य पालन और त्याग का व्यवहार बहुत ही उच्च आदर्श है।
गुरूनानक देव ने तो यहां तक घोषणा कर दी थी कि मालिक के सच्चे दरबार में केवल वही बंदा सम्मान और स्थान पाता है जो स्री का सम्मान-सत्कार करता है।
नारी सम्मान हमारी विरासत है, जरूरत है इन सबसे युवा पीढ़ी को रूबरू करवाए ताकि वे नारी को विषय वस्तु ना समझे-भोग्या ना समझे।

- श्री विश्वशांति टेकड़ीवाल परिवार
समाजसेवक शरद बागडी का सत्कार व जरुरतमंदों को सायकिल वितरण

नागपुर: महाराष्ट्र राज्य सरकार में मंत्री सुधाकर देशमुख का जनमदिन उनके फैडस कॉलोनी कार्यालय मे नगरसेवक, भाजपा पश्चिम के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व भाजपा शहर के पदाधिकारियो नें मिलकर मनाया, इस अवसर प्रधानमंत्री के महिला सशक्तीकरण, ‘बेटी बचाओं- ‘बेटी पढाओं के तहत जरूरतमंद महिलाआें व स्कुल छात्राओं को सायकिल वितरण किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथी राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ समाजसेवक शरद बागड़ी थे। कार्यक्रम को शुरुवात में भाजपा पश्चिम अध्यक्ष किशन गांवडे ने समाजसेवक शरद बागड़ी का परिचय देते हुये कहा कि शरदजी समाजसेवा के साथ में प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रुप मे पर्दे के पीछे से चुपचाप बिना किसी स्वार्थ के पार्टी हित कार्य करते हुए पार्टी को मजबूत करते है।
शरदजी को स्थानीय, राज्य स्तरिय सामाजिक कार्यों के लिये कम से कम ३०, ८ राष्ट्रीय व एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर, हमारे नागपुर शहर का नाम रोशन किया है, यह हम सबके लिये गौरव की बात है, मानपा नगरसेविका व उपनेता सौ. वर्षा जयंत ठाकरे ने शरद बागडी का शाल श्रीफल से सत्कार करते हुये कहा कि शरदजी का रुख हमेशा सकारात्मक रहता है व उनका सहयोग, मार्गदर्शन हम सबको हमेशा समय मिलता रहता है।
मुख्य अतिथी शरद बागडी, नगरसेविका सौ. वर्षा ठाकरे के हाथों सायकिल का वितरण किया गया, इस मौके पर भाजपा पश्चिम अध्यक्ष किशन गावंडे, शेषराव काले नगर संपर्क प्रमुख, अभय देशमुख, गुड्डुभाई, सतीष वाडे, विनोद कनारे भाजपा पश्चिम महामंत्री, जयंत ठाकरे, संध्या ठाकरे, कल्पना पजारे, रेखा दाहने, कमलेश पांडे, संध्याताई बरडे, रमेश जोशी आदि पदाधिकारी व बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मौजुद थे।

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