पुरुलिया: एक विहंगम दृष्टि

पुरुलिया: एक विहंगम दृष्टि ( Purulia: A Bird’s Eye View )

प. बंगाल के २३ जिलों में से एक ‘पुरुलिया’ जिला छोटा नागपुर के पठारी इलाके में आता है, इसे प.बंगाल का एक आदिवासी बहुल जिला माना जाता है।
विश्व के मानचित्र पर इसका नाम १७ दिसम्बर १९९५ में तब उभरा, जब यहाँ के खटंगा इलाके में रात को आकाश मार्ग से अत्याधुनिक अस्त्रों की बारिश हो गई। बहरहाल यहाँ की प्राकृतिक छटा पर्यटकों को बरबस अपनी ओर खींचती है। यहाँ के गोर्गाबुरु, जयचण्डी, दुआरसिनी, बाघमुण्डी और अयोध्या पहाड़ पर्वतारोहियों और दर्शनार्थियों के मन में बसते हैं। इन जंगलों में छोटे और सामान्य वन्य-प्राणियों के अलावा हाथी, बाघ, साही, बबून, भालू और बन्दर सहित मयूरों और अजगरों का वास है। अयोध्या पहाड़ पर एक कृत्रिम विशाल जलाधार बनाया गया है जिसमें वर्षा के जल को रोक कर टर्बाइन के द्वारा पन-बिजली उत्पन्न की जाती है और इसी जल को पम्प कर पुन: जलधारा पहुंचाया जाता है। सम्प्रति यहाँ चाय की भी खेती की जा रही है। बैसाख महीने की पूर्णिमा की रात को इस पहाड़ पर आदिवासियों का शिकार उत्सव चलता है। इस उत्सव का साक्षी बनने की चाह लेकर कोलकाता और अन्य जगहों से भारी संख्या में सेलानी पहुँचते हैं।
पुरुलिया के गढ़ ‘पंचकोट’ का राजमहल भी देखने लायक है। इस राज दरबार की प्रमुख झूमर गायिका और नाचनी (नर्तकी) सिन्धु बाला देवी का हाल ही में निधन हुआ है। कवि माइकल मधुसूदन दत्त इस राजघराने के मैनेजर हुआ करते थे। प्रसिद्ध झूमर गायक भवप्रीतानन्द ओझा यहाँ के राज रत्न थे।
पुरुलिया का साहेब बाँध, जो ८६ एकड़ में पसरा हुआ है और जिसके चारों ओर सुभाष पार्क, जिला विज्ञान केन्द्र, सूर्य मन्दिर, होटल आकाश सरोवर स्थापित हैं। राष्ट्रीय सरोवर का खिताब पाने की राह पर है, इसे निवारण सायर के नाम से भी जाना जाता है, इसका नामकरण मानभूम के सेनानी निवारण चन्द्र दासगुप्त की स्मृति में किया गया है। यहाँ के सूर्य मन्दिर को केंद्र कर साहेब बाँध के किनारे छठ पूजा भक्तिपूर्वक धूमधाम से मनाई जाती है। यहाँ की गौरक्षिणी सभा, सुरुलिया का डीयर पार्क, जिला स्टेडियम आदि उल्लेखनीय है।

पुरुलिया: एक विहंगम दृष्टि ( Purulia: A Bird’s Eye View )

यहाँ के निवासियों की मुख्य जीविका धान की खेती और मछली पालन है। पोखरे और तालाब यहाँ भरे पड़े हैं।
बलरामपुर और झालदा ‘लाख’ उत्पादन के दो बड़े केंद्र हैं। कुसुम, अर्जुन और बेर के पेड़ों पर ‘लाख’ के कीड़े पाले जाते हैं। ‘लाख’ से बनी लहठी सुहागिनों को ललचा देती है। लाख की चूड़ियों पर की गई कशीदाकारी देखते बनती है। ‘लाख’ के ढेरों उत्पाद विदेशों में समादृत हैं। शहतूत के पेड़ों पर रेशम के कीड़े पाले जाते हैं। इनसे रेशम प्राप्त होता है। रघुनाथपुर में रेशम के कपड़े बुने जाते हैं। सिंह बाजार भी रेशम और ताँत के कपड़ों के लिए जाना-पहचाना नाम है।
लोहे की चीजों के लिए ‘झालदा’ प्रसिद्ध है। आगर, छुरी, कैंची, हथौड़ा, खंजर, चाकू, गुप्ती, तवा, कड़ाही आदि का नाम आते ही ‘झालदा’ का नाम आता है। सीमेंट और स्पॉन्ज आयरन के कारखाने यहां के रोजगार का जरिया है।
साहित्य – संस्कृति की बात करें तो यहाँ का ‘छऊ’ नाच विश्व प्रसिद्ध है। इसका श्रेय ‘छऊ’ नाच के शलाका पुरुष गम्भीर सिंह मुड़ा को जाता है, इसके अलावा दाँड़ नाच, घोड़ा नाच भी उल्लेखनीय है। बंगला और संथाली भाषाओं के अलावा हिन्दी की कई पत्र- पत्रिकाएँ प्रकाशन की कोशिश होती रही है। ‘७२ में युगछाया' का प्रकाशन हाथ से लिख कर होता रहा, बाद में वह मुद्रित हुई। आगे चल कर जून ‘८८ में' पुरुलिया प्रॉपर' का मासिक प्रकाशन शुरू हुआ, इन दोनों ही पत्रिकाओं के सम्पादन का दायित्व लेखक ने निभाया है। साहित्यिक पत्रिका ‘समवेत' निकालने का प्रयास हुआ लेकिन इसके चार अंक ही निकल पाये, जिसके सम्पादक थे प्रमोद बेड़िया।
फिलहाल हिन्दी के रचनाकारों में रावेल पुष्प, श्याम अविनाश, प्रमोद बेड़िया, केदार नाथ मोहता, रेणुका आनन्द, मणीन्द्र श्रीवास्तव सक्रिय हैं। हिन्दी की सेवा में स्व. विश्वनाथ बुटालिया का योगदान भी रेखांकित होता है। इतिहास के पन्ने और मिले अवशेष बताते हैं कि पुरुलिया हिन्दू और जैन संस्कृति का केन्द्र रहा है।
पुरुलिया: एक विहंगम दृष्टि ( Purulia: A Bird’s Eye View )
यहाँ के पाक बिड़रा में जैन तीर्थंकर की भग्न मूर्ति मिली है। देवलघाटा और तेलकुपी के भग्नावशेष बताते हैं कि उस समय जैन मंदिरों का निर्माण किस परिपक्वता से किया गया था। यहां के साहित्य मंदिर के संग्रहालय में इन्हें देखा जा सकता है। खनिज सम्पदा की दृष्टि से पुरुलिया कोयला, चूना, पत्थर और सजावट के काम आने वाले विविध प्रकार के सुन्दर पत्थरों से परिपूर्ण है। यहाँ की नदियाँ कुमारी और काँसाई हैं। मकर संक्रांति के दिन इन नदियों में टुसू पर्व की धूम रहती है। चड़क और भादू पूजा की चर्चा न हो तो पुरुलिया की चर्चा पूरी नहीं होती। शिक्षा की चर्चा हो तो बांग्ला स्कूल पर्याप्त है। हिन्दी और उर्दू के स्कूलों की भी प्रोन्नति हुई है। बलरामपुर में भजनाश्रम हिन्दी हाई स्कूल, झालदा में हिंदी हाई स्कूल, पुरुलिया में राजस्थान विद्यापीठ और कस्तूरबा बालिका विद्यालय विशेष हैं। उच्च शिक्षा के लिए झालदा का अछूराम मेमोरियल कॉलेज, पुरुलिया का जगन्नाथ किशोर कॉलेज, निस्तारिणी महिला कॉलेज (स्थापना देशबंधु चित्तरंजन दास की माँ निस्तारिणी देवी के नाम पर की गई) इसका उद्धाटन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने किया था। पुरुलिया पोलिटेक्निक, मानभूम महाविद्यालय, बलरामपुर कॉलेज, लालपुर का महात्मा गाँधी कॉलेज आदि शैक्षिक संस्थान शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। ये सभी कॉलेज सीधू कान्हू बिरसा विश्व विद्यालय के अन्तर्गत हैं।
यहाँ का सैनिक स्कूल और रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ शिक्षा के अच्छे संस्थान हैं। मेडिकल की पढ़ाई के लिए जिला अस्पताल को देबेन माहातो मेडिकल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल के रूप में विकसित किया गया है, जबकि जिला मुख्यालय के पास ही एक सुपर स्पेसियलिटी हॉस्पिटल की स्थापना की गई है। प्रस्तुति- सच्चिदानंद प्रसाद

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