श्री रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी विवेकानंद जी
by Bijay Jain · Published · Updated
स्वामी विवेकानंद
एक ऐसे महापुरूष थे जिनके उच्च विचारों, अध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक अनुभव से हर कोई प्रभावित है, जिन्होने हर किसी पर अपनी एक अदभुद छाप छोड़ी है। स्वामी विवेकानंद का जीवन हर किसी के जीवन में नई ऊर्जा भरता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। स्वामी विवेकानंद प्रतिभाशील महापुरुष थे जिन्हें वेदों का पूर्ण ज्ञान था। विवेकानंद जी दूरदर्शी सोच के व्यक्ति थे जिन्होंने न सिर्फ भारत के विकास के लिए काम किया बलिक लोगों को जीवन जीने की कला भी सिखाई।स्वामी विवेकानंद भारत में हिंदु धर्म को बढ़ाने में उनकी मुख्य भूमिका रही और भारत को औपनिवेशक बनाने में उनका मुख्य सहयोग रहा। स्वामी विवेकानंद दयालु स्वभाव के व्यक्ति थे जो कि न सिर्फ मानव बल्कि जीव-जंतु को भी इस भावना से देखते थे, वे हमेशा भाई-चारा, प्रेम की शिक्षा देते थे उनका मानना था कि प्रेम, भाई-चारे और सदभाव से जिंदगी आसानी से काटी जा सकती है और जीवन के हर संघर्ष से आसानी से निपटा जा सकता है। वे आत्म सम्मान करने वाले व्यक्ति थे उनका मानना था कि – जब तक आप स्वयं पर विश्वास नहीं करते, आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते। स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचारों ने उनको महान पुरुष बनाया, उनका अध्यात्म ज्ञान, धर्म, ऊर्जा, समाज, संस्कृति, देश प्रेम, परोपकार, सदाचार, आत्म सम्मान के समन्वय काफी मजबूत रहा, वहीं ऐसा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है इतने गुणों से धनी व्यक्ति ने भारत भूमि मे जन्म लेना भारत को पवित्र और गौरान्वित करना है।स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी भारत में सफलता पूर्वक चल रहा है, उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुवात ‘मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों’ के साथ करने के लिए जाना जाता है, जो शिकागो विश्व धर्म सम्मलेन में उन्होंने ने हिंदु धर्म की पहचान कराते हुए कहे थे।
स्वामी विवेकानन्द का शुरुआती जीवन – महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जन्म १२ जनवरी १८६३ को हुआ था। विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति ने कोलकाता में जन्म लेकर वहां की जन्मस्थली को पवित्र कर दिया, उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्ता था लेकिन बचपन में प्यार से सब उन्हें नरेन्द्र नाम से पुकारते थे। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि उस समय कोलकाता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित और सफल वकील थे, जिनकी वकालत के काफी चर्चा हुआ करती थी इसके साथ ही उनकी अंग्रेजी और फारसी भाषा में भी अच्छी पकड़ थी। विवेकानंद जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि धार्मिक विचारों की महिला थी वे भी विलक्षण काफी प्रतिभावान महिला थी जिन्होंने धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था, इसके साथ ही वे प्रतिभाशाली और बुद्धिमानी महिला थी जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी काफी अच्छी समझ थी। अपनी मां की छत्रछाया का स्वामी विवेकानंद पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा वे घर में ही ध्यान में तल्लीन हो जाया करते थे इसके साथ ही उन्होंने अपनी मां से भी शिक्षा प्राप्त की थी, इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद पर अपने माता-पिता के गुणों का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें अपने जीवन में अपने घर से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। स्वामी विवेकानंद के माता और पिता के अच्छे संस्कारों और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकोटि की सोच मिली। कहा जाता है कि नरेन्द्र नाथ बचपन से ही नटखट और काफी तेज बुद्धि के व्यक्ति थे वे अपनी प्रतिभा के इतने प्रखर थे कि एक बार जो भी उनके नजर के सामने से गुजर जाता था वे कभी भूलते नहीं थे और दोबारा उन्हें कभी उस चीज को फिर से पढ़ने की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। उनकी माता हमेशा कहती थी की, ‘मैंने शिवजी से एक पुत्र की प्रार्थना की थी उन्होंने मुझे एक शैतान दे दिया’। युवा दिनों से ही उनमें आध्यात्मिकता के क्षेत्र में रूचि थी, वे हमेशा भगवान की तस्वीरों जैसे शिव, राम और सीता के सामने ध्यान लगाकर साधना करते थे। साधुओं और सन्यासियों की बातें उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही। वहीं आगे जाकर यही नरेन्द्र नाथ दुनिया भर में ध्यान, अध्यात्म, राष्ट्रवाद हिन्दू धर्म और संस्कृति का वाहक बने और स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा – नरेन्द्र नाथ का १८७१ में ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में प्रवेश कराया गया, १८७७ में जब बालक नरेन्द्र तीसरी कक्षा में थे जब उनकी पढ़ाई बाधित हो गई थी, दरअसल उनके परिवार को किसी कारणवश अचानक रायपुर जाना पड़ा था। १८७९ में के कलकत्ता वापिस आ जाने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फस्र्ट डिवीज़न लाने वाले वे पहले विद्यार्थी बने। वे विभिन्न विषयों जैसे दर्शन शास्त्रों , धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे, हिंदु धर्मग्रंथों में भी उनकी बहुत रूचि थी जैसे वेद, उपनिषद, भगवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराण। नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण थे और हमेशा शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में सहभागी होते थे।१८८१ में उन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की थी वहीं १८८४ में उन्होंने कला विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी कर ली थी। १८८४ में अपनी बीए की परीक्षा अच्छी योग्यता से उत्तीर्ण की, फिर वकालत की पढ़ाई भी की।१८८४ का समय जो कि स्वामी विवेकानंद के लिए बेहद दुखद था क्योंकि इस समय अपने पिता को खो दिया था, पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर अपने ९ भाईयों-बहनों की जिम्मेदारी आ गई लेकिन वे घबराए नहीं और हमेशा अपने दृढ़ संकल्प में अडिग रहने वाले विवेकानंद जी ने इस जिम्मेदारी को बाखूबी निभाया। १८८९ में नरेन्द्र का परिवार वापस कोलकाता लौटा, बचपन से ही विवेकानंद प्रखर बुद्धि के थे जिसकी वजह से उन्हें एक बार फिर स्कूल में प्रवेश मिला। दूरदर्शी समझ और तेजस्वी होने की वजह से उन्होंने ३ साल का एक साल में ही पूरी कर ली। स्वामी विवेकानंद की दर्शन, धर्म, इतिहास और समाजिक विज्ञान जैसे विषयों में काफी रूचि थी। वेद उपनिषद, रामायण, गीता और हिन्दू शास्त्रों वे काफी उत्साह के साथ पढ़ते थे यही वजह है कि वे ग्रन्थों और शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता थे।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना – १ मई १८९७ को स्वामी विवेकानंद कोलकाता वापस लौटे और उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य नए भारत के निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ-सफाई के क्षेत्र में कदम बढ़ाना था। साहित्य, दर्शन और इतिहास के विद्वान स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रतिभा का सभी को कायल कर दिया और अब वे नौजवानों के लिए आदर्श बन गए थे। १८९८ में स्वामी जी ने बेलूर मठ की स्थापना की, जिसने भारतीय जीवन दर्शन को एक नया आयाम प्रदान किया साथ ही अन्य दो मठों की भी स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद की दूसरी विदेश यात्रा: स्वामी विवेकानन्द अपनी दूसरी विदेश यात्रा पर २० जून १८९९ को अमेरिका चले गए, इस यात्रा में उन्होंने कैलिफोर्निया में शांति आश्रम और संफ्रान्सिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसायटी की स्थापना की। जुलाई १९०० में स्वामी जी पेरिस गए जहां वे ‘कांग्रेस ऑफ दी हिस्ट्री रीलिजंस’ में शामिल हुए, करीब ३ माह पेरिस में रहे इस दौरान उनके शिष्य भगिनी निवेदिता और स्वामी तरियानंद थे। १९०० के आखिरी में भारत वापस लौट आए, इसके बाद भी उनकी यात्राएं जारी रहीं, १९०१ में उन्होंने बोधगया और वाराणसी की तीर्थ यात्रा की, इस दौरान उनका स्वास्थ लगातार खराब होता चला जा रहा था, अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था।
स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु – ४ जुलाई १९०२ को महज ३९ साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हो गई, वहीं उनके शिष्यों की माने तो उन्होंने महा-समाधि ली थी, उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया कि वे ४० साल से ज्यादा नहीं जियेंगे, वहीं इस महान पुरुषार्थ वाले महापुरूष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।