हिन्दी भारत की आत्मा है
by Bijay Jain · Published · Updated
हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़े मनाये जाने के साथ हिन्दी के खतरे में होने के घड़ियाली आँसू भी हिन्दी प्रेमी बहाने लगते हैं, जबकि उनके इस दावे में कोई दम नहीं है कि हिन्दी खतरे में है।
दरअसल, “आत्म” को उत्पीड़ित दिखाए बिना ‘अन्य’ की आलोचना कैसे करें! जबकि तथ्य यह कहते हैं कि ‘हिन्दी’ न तो पिछले दशकों में खतरे में थी और न निकट भविष्य में उसके समक्ष कोई खतरा है। पर देखें तो पाएंगे कि आजादी के समय जो ‘हिन्दी’ भारत की राजभाषा बनने के लिए संघर्ष कर रही थी, आज वह सबसे बड़ी और ताकतवर भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है।
जनगणना विभाग के आंकड़ों के अनुसार जहां भारत की जनसंख्या १९७१ से २००१ के बीच क्रमश: २४.६६ प्रतिशत, २३.८७ प्रतिशत और २१.५४ प्रतिशत दशकीय वृद्धि दर्ज की गई, वहीं हिन्दी को अपनी मातृभाषा बताने वालों की संख्या में इस बीच क्रमश: २७.१२ प्रतिशत, २७.८४ प्रतिशत और २८.०८ प्रतिशत वृद्धि हुई। १९७१ में जहां हिन्दी को अपनी मातृभाषा बताने वाले लगभग २० करोड़ लोग थे, वहीं २००१ में इनकी संख्या ४२ करोड़ हो गई यानी कुल १०८ प्रतिशत वृद्धि हुई। आइए, बोलने वालों की संख्या के आधार पर शीर्ष १० अनुसूचित भाषाओं की स्थिति देखें, हिन्दी ने १९९१ से २००१ के बीच २८.८ की दशकीय वृद्धि दर्ज की, वहीं बंगाली १९.७९ प्रतिशत, तेलुगू १२.१० प्रतिशत, मराठी १५.१३ प्रतिशत, तमिल १४.६८ प्रतिशत, उर्दू १८.७३ प्रतिशत,गुजराती १३.३२ प्रतिशत, कन्नड़ १५.७९ प्रतिशत, मलयालम ८.८५ प्रतिशत और उड़िया बोलने वालों की संख्या १७.६६ प्रतिशत बढ़ी, स्पष्ट है कि ‘हिन्दी’ कोई खतरे में नहीं है, ‘हिन्दी’ इस वक्त देश की सबसे बड़ी और सर्वस्वीकृत भाषा है।
यह एक आजाद नदी की तरह अपना रास्ता बनाती हुई लगातार आगे बढ़ रही है, आम जन के बीच ‘हिन्दी’ बेहद लोकप्रिय है, आजादी के ठीक बाद दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर में ‘हिन्दी’ को लेकर जिस प्रकार का विरोध का माहौल था, ‘हिन्दी’ उससे बहुत आगे बढ़ चुकी है, यह दिलचस्प है, कि ‘हिन्दी’ आज पूर्वोत्तर भारत की सर्वस्वीकृत संपर्क भाषा है, पूर्वोत्तर भारत में सैकड़ों आदिवासी समुदाय रहते हैं, जिनकी अलग-अलग मातृ भाषाएं हैं, उनके बीच संपर्क भाषा या तो अंग्रेजी हो सकती थी या हिन्दी, चूंकि पूर्वोत्तर भारत का उत्तर भारत से भी संवाद बढ़ा है, इसलिए पूर्वोत्तर के लोगों ने अपने यहां भी संपर्क भाषा के रूप में बहुतायत में अंग्रेजी के बजाय ‘हिन्दी’ को चुना, दक्षिण भारत में भी ‘हिन्दी’ समझने-बोलने वालों की संख्या में बहुत तेजी से इजाफा हो रहा है, तमिलनाडु को छोड़कर शेष चार राज्यों यानी केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में तो लगभग हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति ‘हिन्दी’ समझता और व्यवहार करता है, तमिलनाडु में भी अब वैसा विरोध नहीं रहा।
……जिन करुणानिधि की राजनीति ‘हिन्दी’ विरोधी आंदोलन से शुरू हुई थी, आज उन्हें ‘हिन्दी’ से वैसा ऐतराज नहीं है, बल्कि खबर यह भी है कि वे भी अपनी किताब का ‘हिन्दी’ अनुवाद कराना चाहते थे, मीडिया और मनोरंजन का क्षेत्र किसी भी भाषा का बहुत बड़ा वाहक होता है और हिन्दी का इस क्षेत्र पर कब्जा है, आपको गैर-हिन्दी क्षेत्रों के ऐसे ढेरों लोग मिल जाएंगे जो ईमानदारी से स्वीकार करते हैं कि उन्होंने फिल्मों से ‘हिन्दी’ सीखी, विदेशी लोग भी हिन्दी फिल्मों की मदद लेते हैं, हिन्दी सीखने के लिए, हिन्दी के बढ़ते रुतबे का साक्षा यह है,कि आज देश के सबसे बड़े अखबार और न्यूज चैनल ‘हिन्दी’ के हैं, हिन्दी की फिल्मों का कारोबार बहुत बढ़ा है, इसकी वजह यह नहीं है कि मनोरंजन जगत ‘हिन्दी’ से प्रेम करता है, बल्कि इसकी वजह ‘हिन्दी’ की स्वीकारोक्ति और लोकप्रियता है, इसलिए अंग्रेजी के न्यूज चैनल भी बीच-बीच में ‘हिन्दी’ के विज्ञापन दिखाते हैं, हमें इस तथ्य को स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि ‘हिन्दी’ वास्तव में पूरे देश की संपर्क भाषा बन चुकी है, यह भारतीय जनमानस की आत्मा की भाषा है, देश की सबसे बड़ी भाषा और राजभाषा होने की वजह से हिन्दी में रोजगार तुलनात्मक रूप में काफी हैं, ‘हिन्दी’ शिक्षण, ‘हिन्दी’ अनुवादक, ‘हिन्दी’ अधिकारी, ‘हिन्दी’ टाइपिस्ट आदि तमाम जॉब हिन्दी के प्रति आकषर्ण की और बढ़ाती है, अगर हिन्दी में इसी तरह रोजगार रहा तो यह अंग्रेजी को कड़ी चुनौती देती रहेगी।
पिछले दशकों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ‘हिन्दी’ की लोकप्रियता बढ़ी है, आंकड़े बताते हैं कि पिछले ५० वर्षों में अंग्रेजी बोलने वाले ३२० मिलियन से ४८० मिलियन हुए हैं, वहीं इसी अवधि में हिन्दी बोलने वाले २६० मिलियन से ४२० मिलियन हो चुके हैं यानी हिन्दी अंग्रेजी की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रही है और वह धीरे-धीरे विभाषा का रूप धारण करती जा रही है, आज दुनिया के सैकड़ों देशों में ‘हिन्दी’ पढ़ाई जाती है, दरअसल ‘हिन्दी’ में बहुत बड़ा बाजार है. इसलिए मजबूरन कॉरपोरेट दुनिया को भी ‘हिन्दी’ को अपनाना पड़ा है।
अब समय आ गया है कि ‘हिन्दी’ को संयुक्त राष्ट संघ की भाषा बनाए जाने की पुरजोर मांग की जानी चाहिए, ऐसा नहीं है कि ‘हिन्दी’ को खतरा या चुनौती ही नहीं है, ‘हिन्दी’ को सबसे बड़ा खतरा स्वयं हिन्दी प्रेमियों से ही है, जो उसे क्लिष्ट और कृत्रिम भाषा बनाने पर आमादा हैं, ‘हिन्दी’ एक बहती जलधारा है, जो ढेरों बोलियों और लोकभाषाओं से शब्द लेकर आगे बढ़ रही है, दुनिया की हर भाषा इसी पद्धति से आगे बढ़ती है, ‘हिन्दी’ के प्रति शुद्धतावादी आग्रह स्वयं ‘हिन्दी’ के लिए ही नुकसानदेह है, इसलिए इससे बचना चाहिए, दूसरी बात, ‘हिन्दी’ को अन्य भारतीय भाषाओं से भी मित्रतापूर्ण व्यवहार रखना चाहिए, जिससे कि वे भी खुशी से ‘हिन्दी’ को अपना सके, सहज स्वीकार से ‘हिन्दी’ बढ़ेगी, थोपने से नहीं,इस सच को भी समझ लेना चाहिए।