भ्रष्टाचार मुक्त

देश के युवा वर्ग को कर्ज नहीं रोजगार के लिए उपयुक्त संसाधन चाहिए। किसानों को कर्ज नहीं, अपनी फसलों का उचित दाम चाहिए। बाजार से बिचौलियों की भूमिका से आम जन निजात पाना चाहता है। इसीलिए देश का आवाम सत्ता बदलता रहता है बड़ी उम्मीदों के साथ देश के अवाम ने केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी बहुमत देकर भाजपा की सरकार गठित की पर उसे अंतत: निराशा ही हुई। आम जन को न तो बाजार की बढ़ती महंगाई से राहत मिली न देश के युवाओं को रोजगार के लिए नये उद्योग। सरकार की कौशल रोजगार योजना,बैंक से कर्ज देने के सिवाय देश में कितना रोजगार सृजित कर पाई।

सरकार की जीएसटी से जीवन रक्षक दवाइयों से लेकर आम जनजीवन की उपयोग में आने वाली हर वस्तु महंगी हो गई। नोटबंदी योजना के दौरान कालाधन से होने वाली काली कमाई एवं छोटी-छोटी बचत कर बचाने वाले आम जनजीवन को अपने ही रकम के लिए उभरी परेशानियों के दृश्य अभी तक आंखों से ओझल नहीं हो पाए, फिर भी वर्तमान सरकार अच्छे दिन आने की वकालत कर रही है। देश जब से आजाद हुआ, तब से लोकतंत्र की बागडोर सुविधाभोगी लोगों के हाथ आ गई जहां राष्ट्रहित से स्वहित सर्वोपरि होता गया। दिन-ब-दिन चुनाव महंगे होते गए। सत्ता पाने के लिए हर तरह के अनैतिक हथकंडे प्राय अपनाए जाने लगे जिससे लोकतंत्र पर माफियाओं का साम्राज्य धीरे-धीरे सभी राजनीतिक दलों द्वारा स्थापित होने लगा। अर्थबल एवं बाहुबल प्रभावित राजनीतिक प्रक्रिया ने भारतीय लोकतंत्र की दशा एवं दिशा ही बदल दी जहां लूटतंत्र का साम्राज्य स्थापित हो गया। पंचायती राज्य से लेकर विधायिका एवं कार्यपालिका शामिल सभी अपने-अपने तरीके से देश के माफियाओं के संग मिलकर तक देश को लूटने लगे जिससे देश में अनेक प्रकार के घोटाले उजागर हुए।