इण्डिया गेट बनाम ‘भारत द्वार’ निवेदित

भारतीय सैनिकों की स्मृति में किया गया था जो ब्रिटिश सेना में भर्ती होकर प्रथम विश्वयुद्ध और अफगान युद्धों में शहीद हुए थे। यूनाइटेड किंगडम के कुछ सैनिकों और अधिकारियों सहित १३,३०० सैनिकों के नाम, गेट पर उत्कीर्ण हैं। लाल और पीले बलुआ पत्थरों से बना हुआ यह स्मारक दर्शनीय है, जब इण्डिया गेट बनकर तैयार हुआ था तब इसके सामने जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी, जिसे बाद में ब्रिटिश राज के समय की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में स्थापित कर दिया गया, अब जार्ज पंचम की मूर्ति की जगह प्रतीक के रूप में केवल एक छतरी भर रह गयी है।

इण्डिया गेट के नीचे अमर जवान ज्योति

भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् ‘इण्डिया गेट’ भारतीय सेना के अज्ञात सैनिकों के मकबरे की साइट मात्र बनकर रह गया है, इसकी मेहराब के नीचे अमर जवान ज्योति स्थापित कर दी गयी है।अनाम सैनिकों की स्मृति में यहाँ एक राइफल के ऊपर सैनिक की टोपी सजा दी गयी है जिसके चारो कोनों पर सदैव एक ज्योति पर प्रति वर्ष प्रधानमंत्री व तीनों सेनाध्यक्ष पुष्प चक्र चढाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ‘इण्डिया गेट’ की दीवारों पर हजारों शहीद सैनिकों के नाम खुदे हैं और सबसे ऊपर अंग्रेजी में लिखा है

जिसका अनुवाद निम्न है- भारतीय सेनाओं के शहीदों के लिए, जो फ्रांस और लैंडर्स मेसोपोटामिया फारसी पूर्वी अफ्रीका गैलीपोली और निकटपूर्व एवं सुदूरपूर्व की अन्य जगहों पर शहीद हुए और उनकी पवित्र स्मृति में भी जिनके नाम दर्ज हैं और जो तीसरे अफगान युद्ध में भारत में या उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मृतक हुए। दिल्ली की कई महत्त्वपूर्ण सड़के ‘इण्डिया गेट’ के कोनों से निकलती हैं, रात के समय यहाँ मेले जैसा माहौल रहता है। निर्माण-स्थल का इतिहास: १९२० के दशक तक, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पूरे शहर का एकमात्र रेलवे स्टेशन हुआ करता था। आगरा-दिल्ली रेलवे लाइन उस समय लुटियन की दिल्ली और विंग्सवे यानी राजाओं के गुजरने का रास्ता, जिसे अब हिन्दी में राजपथ नाम दे दिया गया है, पर स्थित वर्तमान इण्डिया गेट के निर्माण-स्थल से होकर गुजरती थी। आखिरकार इस रेलवे लाइन को यमुना नदी के पास स्थानान्तरित कर दिया गया, तदुपरान्त सन् १९२४ में जब यह मार्ग प्रारम्भ हुआ तब कहीं जाकर स्मारक स्थल का निर्माण शुरू हो सका। ४२ मीटर उँचे ‘इण्डिया गेट’ से होकर कई महत्वपूर्ण मार्ग निकलते हैं, पहले इण्डिया गेट के आसपास होकर काफी यातायात गुजरता था, परन्तु अब इसे भारी वाहनों के लिये बन्द कर दिया गया है, शाम के समय जब स्मारक को प्रकाशित किया जाता है तब ‘इण्डिया गेट’ के चारों ओर एवं राजपथ के दोनों ओर घास के मैदानों में लोगों की भारी भीड़ एकत्र हो जाती है। ६२५ मीटर के व्यास में स्थित