ज्ञान की भाषा है हिंदी

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल व हिंदी के वरिष्ठ

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल व हिंदी के वरिष्ठ कवि केशरीनाथ त्रिपाठी से प्रो. मनोज कुमार और डॉ. सुप्रिया पाठक की बातचीत हिंदी में कितना रचनात्मक बदलाव हुआ है? हिंदी में अत्यंत संभावनाएँ हैं। वह कल की चुनौतियों से संघर्ष करने लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। उदाहरण के लिए तकनीकी क्षेत्र में ‘हिंदी’ का एक जमाने में कोई उपयोग नहीं था, लेकिन अब लोग उसका प्रयोग कर रहे हैं, यह अत्यंत संतोषप्रद है कि विश्व की किसी भी भाषा की तुलना में हिंदी पिछड़ी नहीं है। हाँ, हमारी प्रगति थोड़ी धीमी है, लेकिन हम धीरे-धीरे प्रगति करते हुए उन भाषाओं को टक्कर दे रहे हैं और हम अपनी उपयोगिता भी सिद्ध कर रहे हैं। हिंदी के साथ-साथ एक और महत्वपूर्ण परिघटना हो रही है, विश्व में हिंदी का स्थान। धीरे-धीरे भारत ने विश्व पटल पर जो गर्व का स्थान हासिल किया है उसके कारण संचार के माध्यमों में बहुत ही बढ़ोत्तरी हुई है और उन संचार के माध्यमों में अब हिंदी का प्रयोग प्राय: दिखाई दे रहा है। मैं वैश्विक स्तर की बात कर रहा हूँ, यह विश्व व्यापार की भाषा बन रही है, मैं समझता हूँ कि हिंदी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। हिंदी जब अंतरराष्ट्रीय आर्थिक बाजार की भाषा बन जायेगी तब हम उसके चमत्कार से परिचित होंगे। पिछले विश्व हिंदी सम्मेलनों की अपेक्षा ११ वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन कितना भिन्न है? मैं समझता हूँ यह बहुत अच्छा आयोजन हुआ है, किसी चीज की कमी नहीं थी। मॉरीशस एक ऐसा देश है जहाँ एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी अधिक है, बावजूद इसके हमारे समस्त प्रतिभागी अत्यंत संतुष्ट नजर आ रहे थी। वे उत्साहपूर्वक आयोजित हिंदी सम्मेलन के

सभी सत्रों में अपनी भागीदारी निभा रहे है, सभी की द्रष्टि भी अत्यधिक सकारात्मक रही, विभिन्न क्षेत्रों में हम हिंदी को प्रयोग किस प्रकार कर सकते हैं इस पर लगातार विचार विमर्श हो रहा है। निश्चित रूप से यह सम्मेलन कोई मेला नहीं है बल्कि सोद्देश्य आए हुए लोगों का संगम था जो हिंदी की प्रगति एवं उसके उत्थान के लिए पधारे थे, हिंदी को वैश्विक एवं सार्थक स्वरूप देने के लिये, सभी का इस ११वें विश्व हिंदी सम्मेलन में बहुत योगदान रहा। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के इस सम्मेलन में भूमि का को आप किस रूप में देखते हैं? महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा ११वें विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान जो समाचार पत्र निकाला जा रहा है उसमें एक दृष्टि मुझे विशेष आकर्षित कर रही है, वह यह आयाम है कि हम हिंदी को आगे बढ़ाएँ और सम्मेलन के सार्थक संदेश को जन-जन तक पहुँचाएं। आपके समाचार पत्र का स्वरूप अत्यंत सार्थक है, यह स्वयं में अत्यंत युपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी जी के जन्म दिवस पर हम सबकी तरफ से शत-शत अभिनन्दन

बड़ी बात है, इस बुलेटिन के माध्यम से प्रतिभागियों के भावों को स्पष्ट रूप से पाठकों तक पहुँचा रहे हैं, यह हिंदी विश्वविद्यालय का एक सार्थक योगदान था इस विश्व हिंदी सम्मेलन में। तकनीक और हिंदी के संबंध को आप किस रूप में देखते हैं? अगर हम विगत ५० वर्षों का इतिहास देखें तो हमने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में हिंदी भाषा में नये-नये शब्दों को निर्मित होते हुए देखा है, इससे यह विश्वास पैदा होता है कि हिंदी में शब्दों की प्रचुरता तो है ही, साथ ही इसमें नये शब्दों को समाहित करने की भी अद्भुत क्षमता है जो इस भाषा की समावेशी प्रवृति का परिचायक है, यह दर्शाता है कि हमारी भाषा में हीनता का भाव नहीं है, इसके मूल में संस्कृति तथा संस्कृति भाषा की भूमिका है। हिंदी का उत्तरोत्तर विकास हो रहा है जिससे हिंदी का व्याकरण बहुत समृद्ध हो रहा है, कई लोग यह मानते हैं कि अब मॉ रीशस में हिंदी एवं भोजपुरी जैसी भाषाओं का लोप हो रहा है और उसके बदले अंग्रेजी एवं क्रियोल भाषा का असर बढ़ा है, इसके बारे में आपकी क्या राय है? ऐसा नहीं है। विश्व के कुछ प्रमुख देशों में मुख्यत: अंगे्रजी बोली जाती है, वर्तमान में आवागमन के बढ़ते साधनों के कारण एक देश का दूसरे देशवासियों के साथ संपर्वâ बढ़ा है, इसलिए उनसे संबंध बनाने के लिए अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग होता है। दूसरी भाषाओं को हिंदी से कोई खतरा नहीं हैं, अन्य भाषाओं की अपेक्षा हिंदी का प्रयोग अधिक होता है। हिंदी के दो रूप हैं। एक बड़ी बहन के रूप में जो अन्य भाषाओं को संरक्षण भी देती है, दूसरे एक भाषा के रूप में यह विश्व की अन्य भाषाओं को कड़ी चुनौती भी दे रही है, वर्तमान सरकार हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर बहुत सराहनीय कार्य कर रही है, कई अंग्रेजी चैनल अपने हिंदी संस्करण खोल रहे हैं, यह निश्चित रूप से भारत में हिंदी की समृद्धि का द्योतक है।