श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा
by Bijay Jain · Published · Updated
गत १२ शताब्दियों से कामधेनु, कपिला, सुरभि की सन्तान वेदलक्षणा गोवंश पर होने वाले अत्याचार रोकने के लिये १७ सितम्बर, सन् १९९३ के दिन सद्गुरु श्री दत्तात्रेय भगवान एवं जगद्गुरु श्रीगोपालकृष्ण भगवान के सर्वकल्याणकारी भाव से पुनः भारत की पवित्र गोचारण भूमि द्वारिका क्षेत्र आनन्दवन पथमेड़ा से राष्ट्रव्यापी रचनात्मक एवं सृजनात्मक गोसेवा महाभियान का सूत्रपात हुआ, जहाँ सांचोर- राजस्थान के गोरक्षक वीरों द्वारा पाकिस्तान की सीमा से कत्लखाने जाते हुए ८ गायें ५ बच्छड़ों सहित १३ गोवंश को छुड़ाकर इस भूमि पर लाया गया, स्थानीय गोभक्तों के निवेदन पर पूज्य परमहंस श्रीमगारामजी राजगुरु तथा सिद्ध बाबा हरिनाथजी महाराज के आत्मीय आग्रह एवं पूज्य श्रीगोऋषिजी की स्वीकृति से उपरोक्त वेदलक्षणा गोमाताओं के सहज, सर्वहितकारी आगमन पर गोसेवा का महाप्रकल्प इस धरा पर प्रारम्भ हुआ, पूज्य गोसेवा प्रेमी संतों एवं गोऋषिजी ने इस गोसेवा प्रकल्प का नाम ‘श्री गोधाम महातीर्थ, आन्दवन पथमेड़ा’ रखा।
सन् १९९४ में श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नोखा चातुर्मास के अवसर पर गीताप्रेस के सम्पादक आदरणीय श्रीराधेश्यामजी खेमका से गोसेवा अभियान में प्रचारात्मक सहयोग की अपील परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्रीदत्तशरणानन्दजी महाराज द्वारा की गई, जिसे उन्होंने सद्भाव से स्वीकार किया, परिणाम स्वरूप सन् १९९५ में गोसेवा अंक का प्रकाशन हुआ जिससे पूरे देश को गोसेवा की रचनात्मक तथा सृजनात्मक दिशा प्राप्त हुई, सन् १९९५-९६ में ही श्री गोधाम पथमेड़ा से प्रेरणा लेकर गोप्रेमी सन्तों, धर्मात्मा सज्जनों के आग्रह से राजस्थान तथा मध्यप्रदेश में गोवंशहितार्थ गोरक्षा अधिनियम में विशेष संशोधन किये गये। २ फरवरी १९९७ में गोधाम पथमेड़ा के पास राष्ट्रीय राजमार्ग १५ से कत्लखाने जाते हुए सैंकड़ों ट्रकों में लदा हुआ हजारों वेदलक्षणा गोवंश स्थानीय गोरक्षक वीरों द्वारा संघर्षपूर्वक मुक्त कराया गया, इस संघर्ष में कई गोरक्षक घायल हो गये और कईयों को जेल भी जाना पड़ा, अन्ततोगत्वा राजस्थान सरकार ने माना कि प्रशासन की गलती से ही इतनी बड़ी संख्या में गोवंश कत्लखाने जा रहा था, इसमें रक्षकों की गलती नहीं थी, अतः सभी गोरक्षकों को निर्दोष घोषित किया गया, इसके बाद राजस्थान व गुजरात में अनेक स्थानों से गोरक्षकों तथा पुलिस द्वारा गोवंश को कसाईयों से छुड़वाकर श्री गोधाम पथमेड़ा के आनन्दवन परिसर में ही भेजा जाने लगा। नवम्बर सन् १९९९ तक इस परिसर में गोवंश की संख्या ४५ हजार तक पहुँच गयी, जगह कम पड़ने के कारण शेरपुरा और टेटोड़ा (गुजरात) तथा गोलासन व खिरोड़ी राजस्थान की गोचरभूमियों पर नये गोसेवा केन्द्रों की स्थापना की गई। पूज्या गोमाता, परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान एवं मां नर्मदा, गौरी की आज्ञा व सत्पुरूषों के स्वपनादेश पूज्य श्री ब्रह्मऋषि मगारामजी राजगुरु, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदासजी महाराज एवं सिद्ध बाबा हरिनाथजी, पूज्य श्रीत्यागमूर्ति गणेशानन्दजी महाराज की प्रेरणा से परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्रीदत्तशरणानन्दजी महाराज के मार्गदर्शन में १८-२० दिसम्बर, १९९९ को श्री पथमेड़ा गोधाम के आनन्दवन परिसर में ऐतिहासिक एवं अनुपम ‘‘राष्ट्रीय कामधेनु कल्याण महोत्सव’’ का दिव्य आयोजन हुआ।
श्री गोधाम पथमेड़ा द्वारा प्रायोजित राष्ट्रव्यापी गोसेवा महाभियान का अनुकरण करते हुए पूरे देश में एक अघोषित एवं असंगठित रचनात्मक तथा सृजनात्मक गोसेवा आन्दोलन का प्राकट्य हुआ, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तराखण्ड, हरियाणा, हिमाचल, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित अनेक प्रांतों में पूज्य गोप्रेमी संतों की प्रेरणा तथा मार्गदर्शन में प्रादेशिक गोसेवा समितियों का गठन हुआ और देश के विभिन्न भागों में साढ़े पांच हजार से अधिक वेदलक्षणा गोवंश संरक्षण केन्द्र प्रारम्भ किये गये, एक हजार से अधिक गोसंवर्धन केन्द्रों की स्थापना हुई, सौ से अधिक स्थानों पर पंचगव्य परिष्करण एवं अनुसंधान का कार्य प्रारम्भ हुआ, हजारों किसानों ने गो-आधारित कृषि उद्ध्योग को पुनः अपनाया, लाखों किसानों ने घर-घर गोपालन प्रारम्भ किया, लाखों धर्मात्मा लोग प्रतिदिन गोग्रास प्रदान करने लगे और इतने ही लोग अपने दैनिक जीवन में पंचगव्य प्रयोग के लिये संकल्पित हुए तथा लगभग दस प्रांतों में गोरक्षा एक्ट में संशोधन हुए और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गोवंश की रक्षा के पक्ष में ऐतिहासिक निर्णय दिया गया
इस अवधि में विशेष उल्लेखनीय कार्यक्रम सन् १९९९ में महोत्सव के अवसर पर देश के अनेक संतों, महापुरुषों और गोभक्त धर्मात्माओं की उपस्थिति में पूज्य त्यागमूर्ति स्वामी श्रीगणेशानंदजी महाराज एवं ब्रह्ऋषि श्री विश्वात्मा बावराजी महाराज तथा अशोक सिंघल के करकमलों से सम्पूर्ण गोवंश संरक्षण हेतु नियमित गोग्रास अर्पण योजना प्रारम्भ की गई, सन् २००५ में राष्ट्रीय कामधेनु कल्याण महोत्सव के अवसर पर जगद्गुरु शंकराचार्यजी महाराज, पूज्य ब्रह्ऋषि श्रीतुलसारामजी महाराज सहित देश के प्रमुख संतों की पावन सन्निधि में भारत के तत्कालीन महामहिम उपराष्ट्रपति श्रीभैरूसिंह शेखावत द्वारा गोचर भूमि विस्तार हेतु अक्षय भूमिदान योजना प्रारम्भ की गयी, इन योजनाओं से देश के अनेक धर्मात्मा सज्जन जुड़कर नियमित गोसेवा आज भी कर रहे हैं। श्रीपथमेड़ा गोधाम की पावन प्रेरणा से कर्नाटक राज्य के रामचन्द्रपुर में सन् २००७ को गोकर्णपीठाधीश्वर श्रीराघवेश्वरभारतीजी महाराज के संयोजकत्व में विश्व गोरक्षा सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें अनुमानित १७ देशों के १५ लाख लोग सम्मिलित हुए, इस सम्मेलन से दक्षिण भारत में गोभक्ति की लहर सी चल पड़ी थी।
सन् २००८ में राजस्थान प्रदेश में सम्पूर्ण गोवंश संरक्षण के लिये हजारों गोभक्तों द्वारा सत्याग्रह किया गया, जिसमें स्वामी श्रीनारायणपुरीजी महाराज, ब्रह्मचारी श्रीजगदीश चैतन्यजी महाराज, पं. श्रीपुखराजजी द्विवेदी की अगुवाई में ६३ गोभक्त आमरण अनशन पर बैठे थे और पूरा प्रदेश आन्दोलित हो रहा था, आन्दोलन के पाँचवें दिन राज्य सरकार का एक विशेष प्रतिनिधिमण्डल वायुयान द्वारा श्रीपथमेड़ा गोधाम के आनन्दवन परिसर में पहुंचा और वहाँ पर संतों व गोभक्तों के समक्ष सहदााों गोमाताओं के मध्य विकलांग गोवंश सम्पोषण सहित गोसेवार्थ विभिन्न प्रतिज्ञाएँ की गई थी। सन् २००९ में योगऋषि स्वामी श्री रामदेवजी महाराज के सान्निध्य में कामधेनु क्रान्ति योग विज्ञान शिविर तथा ब्रह्मऋषि श्रीतुलसारामजी महाराज का चातुर्मास गो-मंगल महोत्सव गोधाम पथमेड़ा में हुआ जिससे सहदााों लोगों ने नियमित गोसेवा का संकल्प लिया और लगभग आधे भारत में गोसेवा का संदेश पहुंचाया। सन् २०१० में पूरे देश में जन-जाग्रति हेतु गोकर्ण पीठाधीश स्वामी राघवेश्वरभारतीजी के सान्निध्य में तथा रा.स्व.संघ के संयोजकत्व में विश्व मंगल गोग्राम यात्रा द्वारा भारत के प्रत्येक गाँव तक गोसेवा का संदेश पहुंचाने का प्रयास हुआ।
सन् २०११ में ५२ सौ वर्षों के बाद पुनः गो नवरात्र अनुष्ठान के रूप में आदि शक्ति सुरभि गोमाता की उपासना के प्रचारार्थ ‘‘भारतीय गोकल्याण महामहोत्सव’’ का विराट आयोजन अर्बुदारण्य क्षेत्र में गोधाम पथमेड़ा द्वारा स्थापित एवं संचालित श्री मनोरमा गोलोक तीर्थ, नन्दगांव परिसर की पावन भूमि पर सम्पन्न हुआ, इस आयोजन में भारत के गोप्रेमी सन्तों को, गो-उपासक विद्वानों को, गोभक्त भामाशाहों को तथा गोपालक किसानों को पूज्य गोमाता की कृपा से अद्भुत अवर्णनीय आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति हुई, इसके बाद तत्काल पूज्य श्री स्वामी राजेन्द्रदासजी महाराज के सान्निध्य में ब्रज चौरासी कोस ‘‘गो-यात्रा’’ का पावन
अनुष्ठान हुआ, जिससे हजारों लागों को गोपालन तथा गोव्रत लेने की अमोघ प्रेरणा प्राप्त हुई तथा परमहंस स्वामी श्रीप्रज्ञानानन्दजी महाराज के मार्गदर्शन में गोसेवा समिति, उड़ीसा का गठन किया गया।
सन् २०१२ में इस तरह का दिव्य और भव्य आयोजन सूर श्याम गोशाला चन्द्रसरोवर में सम्पन्न हुआ, जिससे ब्रजवासियो में पुनः द्वापर युग की स्मृतियाँ जाग्रत हो गई। १३ मार्च २०१३ को राजस्थान के गोभक्तों द्वारा गोवंश के हितार्थ राजधानी जयपुर में ऐतिहासिक ‘‘सुरभि संकीर्तन मोर्चा’’ का आयोजन हुआ, जिसमें ३० हजार से अधिक गोभक्त-गोप्रेमी सम्मिलित हुए, परिणाम स्वरूप स्वतन्त्र भारत में पहली बार तत्कालिक राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विकलांग गोवंश के सतत् पोषण व चिकित्सा का स्थायी अध्यादेश पारित किया। सन् २०१४ की गो नवरात्रि महोत्सव के बाद पूज्य गोमाता की कृपा प्राप्ति हेतु गो-गायत्री दिव्य उपासना की पावन प्रेरणा गोसेवा प्रेमी सन्तों के पवित्र हृदय में स्फुरित हुई, यह पावन अनुष्ठान श्री गोधाम पथमेड़ा के आयोजकत्व में विश्व में गोहत्या का कलंक समूल मिट जाये, गोपालन लोक संस्कृति की पुनः समाज में प्रतिष्ठा हो एवं वेदलक्षणा गोमाता की रक्षार्थ ७ नवम्बर, सन् १९६६ में बलिदान हुए सैकड़ों देवात्माओं को भावांजलि देने हेतु संतों की प्रेरणा से ही श्री गोधाम पथमेड़ा के बहुआयामी प्रकल्प श्री मनोरमा गोलोकतीर्थ, नन्दगांव के परिसर में दिसम्बर २०१४ से होना निश्चित हुआ
परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्रीदत्तशरणानन्दजी महाराज की पावन उपस्थिति में १६ महीनों की अवधि पर्यन्त अर्थात् ८ अप्रैल, २०१६ तक चौबीस लाख के ‘‘३३ गो-गायत्री महापुरुश्चरणों’’ का अनुष्ठान तैंतीस गो-गायत्री उपासकों द्वारा सम्पूर्ण गोवंश संरक्षण, सम्पोषण, संवर्धन के लिये ज्ञात इतिहास का दीर्घकालीन अपूर्व अनुष्ठान आदिशक्ति श्रीसुरभि गोमाता की प्रेरणा से एवं भगवत्कृपा से अनुप्राणित होकर सम्पन्न हुआ, इस अनुष्ठान की अवधि में चारों वेदों, अठारह पुराणों, श्रीभागवतजी, रामायण, महाभारत, ब्राह्मण ग्रन्थों मनु स्मृति आदि का विद्वान विप्रों द्वारा इसी परिसर में पारायण किया गया, पूज्य गोमाता की पावन कृपा राष्ट्र व राष्ट्रवासियों को प्राप्त हो, इस हेतु गो प्रेमी सनातन धर्मी हिन्दू जाति के विभिन्न समाजों का समागम और समाज सेवी संगठनों के सम्मेलन शिविर व संगोष्ठियों सहित अनेक आयोजन इस गोलोकतीर्थ परिसर में सम्पन्न हुए। उपरोक्त गोहितकारी अनुष्ठानों के आयोजनों में गोसेवा के सभी बिन्दुओं पर विचार, मन्थन, चिन्तन, निष्कर्ष एवं सहमति के साथ-साथ ही वेदलक्षणा गोवंश का संरक्षण, सम्पोषण, संवर्धन, पंचगव्य विनियोग के कुछ प्रयोग भी प्रारम्भ किये गये, जिसके उत्साहकारी परिणाम सामने आये हैं, इससे प्रेरित होकर शास्त्र प्रमाण, सत् चिन्तन विवेक तथा अनुभव के आधार पर गोसेवा अनुष्ठान को राष्ट्रव्यापी रचनात्मक एवं सृजनात्मक महाभियान का रूप देने हेतु प्रमुख चार चरणों में विभाजित किया गयागोवंश संरक्षण, गोपालन, गोसवंर्धन, पंचगव्य परिष्करण एवं विनियोग।