छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद तीसरे मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल​

भूपेश बघेल के चयन के बड़े कारण

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को मजबूती देने में योगदान, राहुल ने जो भी जिम्मा सौंपा, बघेल उस पर खरे उतरे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पिछले ५ साल में कांग्रेस को मजबूती दी। बघेल ने बोल्ड स्टैंड लिया और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी को पार्टी से बाहर किया, संगठन को एकजुट बनाए रखा।भाजपा सरकार के खिलाफ आक्रमक रहे, भाजपा नेताओं के साथ कभी मंच साझा नहीं किया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से हाथ नहीं मिलाया, विधानसभा में विपक्ष की मजबूत तस्वीर पेश की।

जोगी कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं बघेल
२३ अगस्त १९६१ को जन्मे बघेल ८० के दशक में युवा कांग्रेस से राजनीति में आए। २००० में जब छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना तो वह पाटन सीट से विधायक थे, जोगी सरकार में उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया। २००३ में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने पर बघेल को विपक्ष का उपनेता बनाया गया २०१३ में झीरम घाटी हमले के बाद कांग्रेस को एक बार फिर से खड़ा करने में बघेल ने अहम भूमिका निभाई। २०१४ में उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। हालांकि, वे सीडी कांड की वजह से भी सुर्खियों में रहे।सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है। १९८५ में यूथ कांग्रेस ज्वाइन की २३ अगस्त १९६१ को दुर्ग जिले के पाटन तहसील में जन्मे बघेल का सियासी सफर १९८५ से शुरू हुआ। उन्होंने युवा कांग्रेस ज्वॉइन की। १९९३ में पहली बार उन्होंने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में पाटन विधानसभा से विधायक चुना गया। वे इस बार भी इसी सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। दिग्विजय सिंह सरकार में रहे कैबिनेट मंत्री मध्यप्रदेश में १९९८ में दिग्विजय सिंह की सरकार बनी, तो भूपेश बघेल को मंत्री बनाया गया। १९९९ में उन्हें परिवहन की जिम्मेदारी दी गई, इसके बाद २००० मे एमपी राज्य सड़क परिवहन निगम अध्यक्ष नियुक्त किया गया ये रहे मौजूद शपथ कार्यक्रम में भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ग्रहण की और राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री बन गए।

श्री बघेल के साथ ही दो मंत्रियों ने भी शपथ ली। श्री बघेल को राजधानी के इंडोर स्टेडियम में आयोजित समारोह में राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलवायी। राज्यपाल ने श्री बघेल के अलावा मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे ताम्रध्वज साहू एवं टी.एस. सिंहदेव को मंत्री के पद की शपथ दिलवाई। राज्य में १५ वर्षों बाद सत्ता में वापस लौटी कांग्रेस में नई सरकार के गठन को लेकर कांग्रेसजनों में काफी उत्साह होने के चलते शपथ ग्रहण का भव्य कार्यक्रम साइंस कालेज मैदान में रखा गया था, लेकिन कल रात से मौसम खराब होने तथा वर्षों जारी रहने से इसे इंडोर स्टेडियम में आयोजित करना पड़ा। श्री बघेल के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत,उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री नाराय़णसामी, पंजाब सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्दू,नेशनल कान्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला, पूर्व केन्द्रीय मंत्री शरद यादव, आनन्द शर्मा, मोहसिना किदवई, मोतीलाल वोरा, लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खडगे, निवर्तमान मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह राज्य के कांग्रेस प्रभारी पी. एल. पुनिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आर.पी.एन सिंह, उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राजबब्बर, पूर्व सांसद एवं उद्योगपति नवीन जिन्दल समेत पक्ष-विपक्ष के कई नेता मौजूद थे।श्री बघेल मध्यप्रदेश को विभाजित कर २००० में आस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ के तीसरे तथा कांग्रेस के दूसरे मुख्यमंत्री बन गए है, श्री बघेल को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया था। छत्तीसगढ़ में पिछले १५ वर्षो से सत्ता में काबिज रही भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने और कांग्रेस को सत्ता को दो तिहाई से अधिक बहुमत के साथ वापस लाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पिछड़े वर्ग से आने वाले किसान परिवार के श्री बघेल की छवि एक आक्रमक नेता की है।

समाजसुधारक सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के नायगांव में १८३१ को हुआ था, उनके परिवार में सभी खेती करते थे, ९ साल की आयु में ही उनका विवाह १८४० में १२ साल के ज्योतिराव फुले से हुआ, सावित्रीबाई और ज्योतिराव को दो संतानें है, जिसमें से यशवंतराव को उन्होंने दत्तक लिया है जो एक विधवा ब्राह्मण का बेटा था। सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले भारतीय समाजसुधारक और कवियित्री थी, अपने पति, ज्योतिराव फुले के साथ उन्होंने भारत में महिलाओं के अधिकारों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण काम किये, उन्होंने १८४८ में पुणे में देश की पहली महिला स्कूल की स्थापना की, सावित्रीबाई फुले जातिभेद, रंगभेद और लिंगभेद के सख्त विरोध में थी।सावित्रीबाई एक शिक्षण सुधारक और समाज सुधारक दोनों ही तरह का काम करती थी, ये सभी काम वह विशेष रूप से ब्रिटिश कालीन भारत में महिलाओं के विकास के लिये करती थी। १९वीं शताब्दी में कम उम्र में ही विवाह करना, हिन्दूओं की परंपरा थी, इसीलिये उस समय बहुत सी महिलायें अल्पायु में ही विधवा बन जाती थी, धार्मिक परम्पराओं के अनुसार महिलाओं का पुनर्विवाह नहीं किया जाता था। १८८१ में कोल्हापुर के एक संविधान में ऐसा देखा गया की विधवा होने के बाद उस समय महिलाओं को अपने सर के बाल काटने पड़ते थे, बहुत ही साधारण जीवन जीना पड़ता था।

सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ऐसी महिलाओं को उनका हक्क दिलवाना चाहती थी, इसे देखते हुए उन्होंने नाईयों के खिलाफ आंदोलन करना शुरू किया और विधवा महिलाओं को सर के बाल कटवाने से बचाया। महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा न होने की वजह से महिलाओं पर काफी अत्याचार किये जाते थे, जिसमें कहीं-कहीं तो घर के सदस्यों द्वारा ही महिलाओं पर शारीरिक शोषण किया जाता था, गर्भवती महिलाओं का कई बार गर्भपात किया जाता था, बेटी पैदा होने के डर से बहुत सी महिलायें आत्महत्या कर लेती थी। एक बार ज्योतिराव ने एक महिला को आत्महत्या करने से रोका, उसे वादा करवाया कि बच्चे के जन्म होते ही वह उसे अपना नाम दे। सावित्रीबाई ने उस महिला को अपने घर पर रहने की आज्ञा दे दी और गर्भवती महिला की सेवा भी की। सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने उस बच्चे को अपनाने के बाद उसे यशवंतराव नाम दिया, यशवंतराव बड़ा होकर डॉक्टर बना, महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने महिलाओं की सुरक्षा के लिये एक सेंटर की स्थापना की और अपने सेंटर का नाम ‘बालहत्या प्रतिबंधक गृह’ रखा। सावित्रीबाई महिलाओं की जी जान से सेवा करती थी और चाहती थी की सभी बच्चे उन्हीं के घर में जन्म लें।

घर में सावित्रीबाई किसी प्रकार का रंगभेद या जातिभेद नहीं करती थी वह सभी गर्भवती महिलाओं का समान उपचार करती थी। सावित्रीबाई फुले १९ वीं शताब्दी की पहली भारतीय समाजसुधारक थी और भारत में महिलाओं के अधिकारों को विकसित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। सावित्रीबाई फुले और दत्तक पुत्र यशवंतराव ने वैश्विक स्तर १८९७ में मरीजों का इलाज करने के लिये अस्पताल खोल रखा था, उनका अस्पताल पुणे के हडपसर में सासने माला में स्थित है, उनका अस्पताल खुली प्राकृतिक जगह पर स्थित है,अपने अस्पताल में सावित्रीबाई खुद हर एक मरीज का ध्यान रखती, उन्हें विविध सुविधायें प्रदान करती, इस तरह मरीजों का इलाज करते-करते वह खुद एक दिन मरीज बन गयी, इसी के चलते १० मार्च १८९७ को उनकी मृत्यु हो गयी। सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका रहीं, हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया|

जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थी तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर तक फैंका करते थे, सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थी और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थी, अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं। उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता, उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने-लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने की बात करती है।

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