सम्यक समाधि भावना से सम्बंधित कुछ पंक्तियाँ

सम्यक समाधि भावना

चेतना जगलो, चिता जलने से पहले निज आत्मा की आस्था जगलो, अस्थियाँ बिखरने से पहले, संयम धारण कर लो, रोग आने से पहले, परमात्मा को भज लो, पेरालाइसिस होने से पहले,अंतर के नयन खोल लो, नली चोक होने से पहले, सत्संग करलो सुगर होने से पहले, परिणाम कोमल करलो ‘केंसर होने से पहले, मंत्र जप की गुरिया सरका लो, कमर की गुरिया सरकने से पहले, चित्त निर्मल करलो, डायलिसिस होने से पहले, भावों की गति ऊर्ध करलो,बी.पी. बढने से पहले, निज का अवलंबन ले लो, पराधीन होने से पहले, ज्ञानियों का आदर कर लो, कर्मों के थप्पड़ खाने से पहले, निज तत्व को जान लो, अर्थी उठने से पहले २ पाप कर्म का एक झटका अच्छे-अच्छे रूस्तमों को पानी पिला देता है, अंहकार में अकड़े लोगों को, दिन में तारे दिखा देता है, चेतो! जागो! सम्हलो!, कर्म का उदय तीर्थंकरों को भी नहीं छोड़ता। आज जिसकी डोली उठी है,कल उसकी अर्थी भी उठ जायेगी, घर परिवार की ये बगिया,सूनी रह जायेगी,जागो चेतन! आत्मा अकेली आयी है, अकेली चली जायेगी, जीव अकेला है, अकेला जाता है, न कुछ लाता है न कुछ ले जाता है, कर्तव्य व अपनत्व में उलझकर माया धुनता है, संयम, सम्यक्त्व के बिना यू ही उमर खोता है, मनुष्य जीवन प्रभात की बेला है, वहय में जो कुछ भी दिख रहा, वो कर्म रूपी मेला है, पूरी भीड़ में जीव तू अकेला है, सम्यकत्व दीपक जलालो चेतन, सब चला चली बेला है। ह्रदय से भायी हुई सम्यक्त्व समाधि की भावना, रोगो को अस्पताल से बचा सकती है, प्रतिकूलता होने पर भी, समता शांति जगा सकती है, गंभीरता से विचार करो, प्रिय भव्य जनों, ये वर्तमान जीवन को भी निखार सकती है।जिन देशना की प्रभावना, मुक्ति श्री का आमंत्रण है, जिन देशना की विराधना, अंतराय, निगोद का आंमत्रण है, समाधि की भावना की विराधना, कुमरण का आमंत्रण है, ज्ञानी धर्मात्मा का सत्संग, सुखी जीवन का आमंत्रण है, ज्ञानी धर्मात्मा का अनादर, अशुभ कर्मों का आमंत्रण है। आधि, व्याधि, उपाधि तीनों रोगों की एक दवा है सम्यक समाधि जीवन हमें मिला है, जीना भी हमें है, जीने वाले तत्व के साथ जी लो, इसी में जीवन का भला है।

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