जमदग्नि ऋषि

आश्रम : हरियाणा में कैथल से उत्तरपूर्व की ओर २८ किलोमीटर की दूरी पर जाजनापुर गाँव स्थित है, यहां महर्षि जमदग्नि का आश्रम था, अब यहां एक सरोवर अवशेष रूप में हैं, यहां प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की दसवीं को मेला लगता है। महर्षि जमदग्नि की परम्परा में बाबा साधु राम ने जहां तपस्या की है और अपने शरीर का त्याग किया है, उस स्थान को बाबा साधु राम की समाधि के रूप में पूजा जाता है, इस सरोवर की आज भी विशेष बात यह मानी जाती है कि इसमें पानी भरने के बाद फूंकार-हंकार की आवाज आती है। पूर्ण लबालब भरा सरोवर भी पन्द्रह दिनों में सुख जाता है। सांपों की इस जगह अधिकता माना जाती है, लेकिन आज तक कोई नुकसान नहीं हुआ।
जनश्रुति के अनुसार महर्षि जमदग्नि ऋचीक के पुत्र और भगवान परशुराम के पिता थे, इनके आश्रम में इच्छित फलों को प्रदान करनी वाली गाय थी जिसे कार्तवीर्य छीनकर अपनी राजधानी माहिष्मति ले गया, परशुराम को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने कार्तवीर्य को मार दिया और कामधेनु को वापिस आश्रम में ले आए और एक दिन अवसर पाकर कार्तवीर्य के पुत्रों को भी मार डाला और समस्त पृथ्वी पर घूम-घूम कर इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार किया तब उन्होंने अपने पिता के मस्तक को धड़ से जोड़ा और उनका अन्त्येष्टि संस्कार माहूर, जिला- नांदेड महाराष्ट्र में सम्पन्न किया, यहां माता रेणुका का प्राचीन मंदिर स्थापित है और प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कुरूक्षेत्र भूमि में पांच कुण्ड बनाकर पितरों का तर्पण किया, ये पांचों सरोवर समन्त पंचक-तीर्थ के नाम से विख्यात हुए, जिसे ब्रह्मा जी उत्तर वेदी कहते हैं वह यही समन्त पंचम तीर्थ है। वामन पुराण में लिखा है कि समन्त पंचक नाम धर्मस्थल चारों ओर पांच-पांच योजन तक फैला हुआ है, सम्भवतः परशुराम द्वारा स्थापित पांचकुण्डों में से एक कुण्ड जाजनपुर का यही स्थल है।
अरूणाचल प्रदेश में लोहित नदी के तट पर ही परशुराम कुण्ड स्थित है। पौराणिक मान्यता अनुसार परशुराम अपनी माता रेणुका की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां आए थे, इस कुण्ड में स्नान के बाद वे मां की हत्या के पाप से मुक्त हुए थे, इस संदर्भ में पौराणिक आख्यान है कि किसी कारण वश परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपनी धर्मपत्नी रेणुका पर कुपित हो गए, उन्होंने तत्काल अपने पुत्रों को रेणुका का वध करने का आदेश दे दिया, लेकिन उनके आदेश का पालन करने के लिए कोई पुत्र तैयार नहीं हुआ। परशुराम पितृभक्त थे, जब पिता ने उनसे कहा तो उन्होंने अपने फरसे से मां का सर धड़ से अलग कर दिया, इस आज्ञाकारिता से प्रसन्न पिता ने जब वर मांगने को कहा तो परशुराम ने माता को जीवित करने का निवेदन किया, इस पर जमदग्नि ऋषि ने अपने तपोबल से रेणुका को पुन: जीवित कर दिया।
रेणुका तो जीवित हो गईं लेकिन परशुराम मां की हत्या के प्रयास के कारण आत्मग्लानि से भर उठे, यद्यपि मां जीवित हो उठी थी लेकिन मां पर परशु प्रहार करने के अपराधबोध से वे इतने ग्रस्त हो गए कि उन्होंने पिता से अपने पाप के प्रायश्चित का उपाय भी पूछा। पौराणिक प्रसंगों के अनुसार ऋषि जमदग्नि ने तब अपने पुत्र परशुराम को जिन-जिन स्थानों पर जाकर पापविमोचन तप करने का निर्देश दिया, उन स्थानों में परशुराम कुण्ड सर्वप्रमुख है।

भगवान परशुराम ने भारतीय संस्कृति को दिलाई नई पहचान

भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम की जयंती अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाती है, ये वही परशुराम हैं जिन्होंने क्रोध में आकर भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था, इसके अलावा भी कई ऐसी घटनाएं हैं जिनमें परशुराम के क्रोध की कहानियां मिलती हैं, कहा जाता है कि इनके क्रोध से सभी देवी-देवता भयभीत रहा करते थे, यहां जानें आखिर विष्णु और शिव के अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम आखिर हैं कौन?

मान्यता है कि पराक्रम के प्रतीक भगवान परशुराम का जन्म ६ उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसलिए वह तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने, माता-पिता भक्त परशुराम ने जहां पिता की आज्ञा से माता का गला काट दिया, वहीं पिता से माता को जीवित करने का वरदान भी मांग लिया, इस तरह हठी, क्रोधी और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाले परशुराम का लक्ष्य मानव मात्र का हित था।
परशुराम ही थे, जिनके इशारों पर नदियों की दिशा बदल जाया करती, अपने बल से आर्यों के शत्रुओं का नाश किया, हिमालय के उत्तरी भू-भाग, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, कश्यप भूमि और अरब में जाकर शत्रुओं का संहार किया, उसी फारस जिसे पशिया भी कहा जाता था, का नाम इनके फरसे से किया गया।
उन्होंने भारतीय संस्कृति को आर्यन यानी ईरान के कश्यप भूमि क्षेत्र और आर्यक यानी इराक में नई पहचान दिलाई। गौरतलब है कि पशियन भाषी पाशिया परशुराम के अनुयायी और अग्निपूजक कहलाते हैं और परशुराम से इनका संबंध जोड़ा जाता है, अब तक भगवान परशुराम पर जितने भी साहित्य प्रकाशित हुए हैं, उनसे पता चलता है कि मुंबई से कन्याकुमारी तक के क्षेत्रों को ८ कोणों में बांटकर परशुराम ने प्रांत बनाया था और इसकी रक्षा की प्रतिज्ञा भी ली थी इस प्रतिज्ञा को तब की अन्यायी राजतंत्र के विरुद्ध बड़ा जनसंघर्ष कहा गया, उन्होंने राजाओं से त्रस्त ब्राह्मणों, वनवासियों और किसानों अर्थात सभी को मिलाकर एक संगठन खड़ा किया, जिसमें कई राजाओं सहयोग मिला. अयोध्या, मिथिला, काशी, कान्यकुब्ज, कनेर, बिंग के साथ ही पूर्व के प्रांतों में मगध और वैशाली भी महासंघ में शामिल थे जिसका नेतृत्व भगवान परशुराम ने किया।
दूसरी ओर हैहयों के साथ आज के सिंध, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, लाहौर, अफगानिस्तान, कंधार, ईरान और ऑक्सियाना के पार तक फैले २१ राज्यों के राजाओं से युद्ध किया, सभी २१ अत्याचारी राजाओं और उनके उत्तराधिकारियों तक का परशुराम ने विनाश कर दिया था, ताकि दोबारा कोई सिर न उठा सके।
भगवान परशुराम को लेकर एक आम धारणा है कि वे क्षत्रियों के कुल का नाश करने वाले थे, जो पूरा सत्य नहीं है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भी भगवान परशुराम ‘क्षत्रिय’ वर्ण के हंता न होकर मात्र क्षत्रियों के एक कुल हैहय वंश का समूल विनाश करने वाले हैं. दसवीं शताब्दी के बाद लिखे ग्रंथों में हैहय की जगह क्षत्रिय लिखे जाने के प्रमाण भी मिलते हैं।

परशुराम ही वह व्यक्तित्व है, जो इतिहास का पहला ऐसा महापुरुष कहलाएगा, जिसने किसी राजा को दंड देने के लिए राजाओं को इकट्ठा करके एक नई राजव्यवस्था बनाई, युद्ध में विजय के बाद राज्य संचालन की सही व्यवस्था न होने से अपराध और हाहाकार की स्थिति भी बनी और घबरा, कर ऋषियों ने तप में लीन दत्तात्रेयजी को उठाकर पूरा वृत्तांत बताया, कपिल ऋषि के साथ जाकर दत्तात्रेय ने परशुराम को समझाया, उनकी बुद्धि जागृत की।
ग्रंथ कहते हैं कि कई वर्षों बाद जब परशुराम को समझ आया तो अपने कृत्यों पर पश्चाताप करने लगे, परशुराम को दत्तात्रेय ऋषि, कपिल ऋषि और कश्यप ऋषि तीनों ने बहुत धिक्कारा। ग्लानि में डूबे परशुराम ने संगम तट पर सारे जीते हुए राज्यों को कश्यप ऋषि को दान कर दिया और स्वयं महेंद्र पर्वत चले गए, इस तरह फिर से राजकाज की सुचारु शासन व्यवस्था शुरू की जा सकी।
केरल प्रदेश को बसाने वाले भगवान परशुराम ही थे, एक शोध के अनुसार, परशुराम में ब्रह्मा की सृजन शक्ति, विष्णु की पालन शक्ति व शिव की संहार शक्ति विद्यमान थी, इसलिए वह त्रिवंत कहलाए, उनकी तपस्या स्थली आज भी तिरुवनंतपुरम के नाम से प्रसिद्ध है, जो अब केरल की राजधानी है।
केरल, कन्याकुमारी और रामेश्वरम के संस्थापक भगवान परशुराम की केरल में नियमित पूजा होती है, यहां के पंडित संकल्प मंत्र उच्चारण में समूचे क्षेत्र को परशुराम की पावन भूमि कहते हैं।
एक शोधार्थी का यह भी दावा है कि ब्रह्मपुत्र, रामगंगा व बाणगंगा नदियों को जन कल्याण के लिए अन्य दिशाओं में प्रवाहित करने का श्रेय भी परशुराम को ही जाता है, शस्त्रशास्त्र का ज्ञान समाज के कल्याणार्थ आदिकाल से ही ऋषियों, मुनियों और ब्राह्मणों द्वारा कराया जाता रहा, लेकिन यह भी सच है, जब भी इसका दुरूपयोग शासक वर्ग द्वारा किया जाता है, तब भगवान परशुराम जैसा ब्राह्मण कुल में जन्मा और अत्याचारियों का विध्वंश कर उन्हें दंडित करने के लिए शस्त्र उठाकर, हिसाब-किताब बराबर करने को तत्पर हुआ।
रामायण में जहां भगवान परशुराम को केवल क्रोधी ही नहीं, बल्कि सम्मान भावना से ओतप्रोत कहा गया है, वहीं महाभारत काल में कौरवों की सभा में भगवान कृष्ण का समर्थन करते हुए चित्रित किया गया है। परशुराम के बारे में पुराणों में लिखा है कि महादेव की कृपा व योग के उच्चतम ज्ञान के सहारे वे अजर, अमर हो गए और आज भी महेंद्र पर्वत में किसी गुप्त स्थान पर आश्रम में रहते हैं, कई धर्मग्रंथों में वर्णित नक्षत्रों की गणना से है। हय-परशुराम युद्ध अब से लगभग १६३०० साल के पहले का माना जाता है।
वहीं कुछ कथाएं ये भी हैं कि कई हिमालय यात्रियों ने परशुराम से भेंट होने की बात भी कही है। भगवान परशुराम की यही गाथा है, जिसमें अनीति, अत्याचार, छल-प्रपंच का संहार करने की सच्चाई है जो आज भी प्रासंगिक है और युगों-युगों तक रहेगी।

महाशिवरात्रि पर्व

महाशिवरात्रि हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्वों में से एक है, दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है, वहीं उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के मुताबिक़ फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है। पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही दिन पड़ती है, इसलिए अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से पर्व की तारीख़ वही रहती है, इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत का शास्त्रोक्त नियम : महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार निम्न नियम तय किए गए हैं –
१. चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं, रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।
२. चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है।
३. उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर बाक़ी हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।

शिवरात्रि व्रत की पूजा-विधि :
१. मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए, अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।
२. शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए, साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।
३. शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है, हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।

ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व : चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं, इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है, ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है, गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं, चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है – अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है, दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा : शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं, विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
वहीं गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला, वह थक कर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था, अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उन पर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरी, ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया, जिसे उठाने के लिए वह शिवलिंग के सामने नीचे को झुका, इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली।
मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया, जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।

६.५ करोड़ लोगों के पास घर नहीं हमारी झुग्गियों में आबादी इंग्लैंड से भी ज्यादा

देश में २०२२ तक सभी को घर देने के महत्वाकांक्षी सपने के बीच आज भी ६.५ करोड़ भारतीय झुग्गियों में रहते हैं, यह संख्या इंग्लैंड (५.८ करोड़) और इटली (६.०६ करोड़) की कुल आबादी से ज्यादा है। महाराष्ट्र में १.१८ करोड़ आबादी झुग्गी-बस्ती में रहती है। दूसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश है। दोनों राज्यों में भारत के एक तिहाई झुग्गियों में रहने वाले लोग हैं। २०११ की जनगणना के अनुसार, देश में ६.५५ करोड़ लोग झुग्गी-बस्ती में रहने को मजबूर हैं। आवाज और शहरी मामलों के राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी ने गत दिनों राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी।
शहरी और आवास मंत्रालय के मुताबिक पिछले चार साल के दौरान मलिन बस्तियों में ७२, ८०,८५१ घर थे।
३८,६७,१९१ घरों को बनाने की मंजूरी दी गई। १४, ७५, ८७९ को पुरा तक दिलाया गया, जबकि ३,१४,७६५ घर अनाधिकृत थे।
५९ लाख लोग घरों में आबाद
महाराष्ट्र में झुग्गियों में रहने वाले १.१८ करोड़ लोग २५ लाख घरों में आबाद हैं, जबकि आंध्र प्रदेश की १.२ करोड़ जनसंख्या २४ लाख घरों में, केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश के सभी १२५ शहरों में से १८९ में झुग्गी-बस्तियां हैं।
हालांकि झुग्गी-बस्तियों वाले शहरों की सबसे अधिक संख्या इन राज्यों में नहीं है। तमिलनाडु शीर्ष पर है, वहां ७२१ शहरों में से ५०७ में झुग्गी-बस्तियों की बसाहट है, मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा ३६४ शहरों में ३०३ है।
जरूरी सुविधाओं का अभाव
बुनियादी जरूरतों के लिए तरसने वाले इन झुग्गियों में लोगों के रहनसहन का स्तर, स्वास्थ्य, शिक्षा, मृत्यु दर और मानसिक तनाव आदि मानकों पर स्थिति चिंताजनक है।

पश्चिम भारत सनाढ्य गौड़ सभा का स्नेह सम्मेलन

मुंबई: कांदिवली के ठठाई भाटिया हॉल में पश्चिम भारत सनाढय गौड़ सभा द्वारा संस्था का ४१वां वार्षिक स्नेह सम्मेलन एवं युवक-युवती परिचय सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें अनेक स्थानों से आये हुए समाज बंधुओं ने हिस्सा लिया, उपस्थित अतिथियों के हाथों दीप प्रज्वलन के साथ उत्सव की शुरूआत की गई।
कार्यक्रम के प्रथम चरण में विवाह योग्य युवक-युवतियों का परिचय सम्मेलन रखा गया और द्वितीय चरण में नृत्य, संगीत का मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया, जिसमें बच्चों द्वारा फिल्मी गानों पर नृत्य एवं सुमधुर ८० के दशक के गानों के सुंदर नगमें प्रस्तुत किये गए। तृतीय चरण में उपस्थित अतिथियों का सम्मान समारोह सम्पन्न हुआ, जिसमें कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इस्कोन के गौरंगदास प्रभुजी विशेष अतिथि उद्योगपति केशव शर्मा, उद्योगपति प्रशांत शर्मा एवं पत्रकार डॉ उरूक्रम शर्मा का पुष्प गुच्छ एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया गया, इसके साथ ही समाज के वरिष्ठ सदस्यों का और मेधावी छात्रों का भी सम्मान किया गया, इस दौरान उद्योगपति ब्रह्मानंद शर्मा को समाजगौरव सम्मान दिया गया। संस्था से जुड़े जिन दंपत्ति ने दाम्पत्य जीवन के ५० वर्ष पूरे किये, उनका सम्मान इस कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहा।
संस्था के अध्यक्ष प्रकाश शर्मा ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया, संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी भवानी शंकर शर्मा ने बताया कि वे आगे भी संस्था के सभी सदस्यों के सहयोग से पश्चिम भारत सनाढय गौढ़ सभा को और आगे लेकर जाएंगे, संस्था के मंत्री महावीर शर्मा ने बताया कि आज जिस तरह ४१वां वार्षिक सम्मेलन सम्पन्न हुआ, ऐसे ही आगे भी संस्था अग्रणी रहेगी, इसके बाद संस्था के ट्रस्टी अशोक रावत के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में पूर्व अध्यक्ष राकेश शर्मा, मनीष शर्मा, अशोक शर्मा, कुसुम शर्मा, सुरेखा शर्मा, राजकुमार शर्मा, कल्पना मनीष शर्मा, ममता महावीर शर्मा, रामेश्वर दयाल शर्मा, दुर्गेश कुमार शर्मा आदि का विशेष योगदान रहा।

आदिवासी क्षेत्र उधना में स्कूल के लिए नयी बिल्डिंग का उद्घाटन

पालघर-महाराष्ट्र: महादेवी परमेश्वरीदास जिंदल चेरिटेबल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी श्रीकिशन जिंदल एवं अन्य ट्रस्टियों के सहयोग एवं वॉक टुगेदर फाउंडेशन के तत्वावधान में आदिवासी बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल हेतु बनायी गई बिल्डिंग का उद्घाटन किशन जिंदल, उनकी पत्नी श्रीमती कृष्णा एवं पुत्र अजय तथा पुत्रवधू ममता जिंदल के कर कमलों से रविवार, ०३ फरवरी २०१९ को जिला पालघर, तालुका तलासरी के अंतर्गत उधवा गांव में सभी आदिवासी परिवारों की उपस्थिति में धूमधाम से किया गया।
इस कार्यक्रम में उपस्थित ट्रस्टी कांतीलाल शाह, गौतम गांधी एवं मनीष दोशी ने बताया कि इस स्कूल के निर्माण से आदिवासी बच्चों में खुशी का माहौल व्याप्त है, इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों में श्री ललित बगड़िया, रामू देवड़ा एवं अमृतलाल शाह भी उपस्थित थे।

बता दें कि इस ट्रस्ट के सहयोग से संचालित उधना का स्कूल ११वां स्कूल है, इससे पहले इस ट्रस्ट के द्वारा बनाये गये वॉक टुगेदर प्रायमरी आश्रम स्कूल कोचाई, महादेवी परमेश्वरीदास जिंदल हाई स्कूल न्हाले, श्रीमती कमलाबेन जोगानी हाई स्कूल भोपाली, जय कुमार जैन सेकेंडरी आश्रम स्कूल कोचाई, श्री जय कुमार जैन जूनियर कॉलेज कोचाई, महादेवी परमेश्वरीदास जिंदल हाई स्कूल तलवाड़ा, उमेद दोशी हाई स्कूल धरमपुर, प्रभा हीरा गांधी हाई स्कूल मेधा, जितेंद्र भंसाली जूनियर कॉलेज विक्रमगढ़ और प्रभा हीरा गांधी हाई स्कूल वडोली में अधिकाधिक संख्या में बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

कृते महादेवी परमेशवरीदास जिंदल चैरिटेबल ट्रस्ट
ललित बगड़िया
भ्रमणध्वनि:९८९२१५४४४६/८७७९९८०४६३
धारा ३७० हटाई जाए ताकि जम्मू कश्मीर मुख्यधारा से जुड़ा रहे

मुंबई: महाराष्ट्र में बीजेपी के वरिष्ठ विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा ने जम्मू कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए धारा ३७० हटाने की मांग की है। ताकि कश्मीरी लोग अपने आप को अलग मानकर भारत से कटे कटे ना रहें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र में विधायक लोढा ने इसके साथ यह भी मांग की है कि
केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर के लिए विशेष पैकेज घोषित कर, ताकि वहां युवाओं को रोजगार के अवसर मिले। विधायक लोढा ने इसे समय की मांग बताया है।
पुलवामा में भारतीय सैनिकों पर हमले के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी को लिखे इस पत्र में विधायक लोढा ने कहा है कि आप कड़े फैसले लेने के पक्षधर हैं, आपके पीछे कई निर्णयों से यह साबित हुआ है, इसलिए धारा ३७० हटाने का तत्काल फैसला लेकर वहां के व्यवसायिक एवं औद्योगिक विकास के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की जाए, ताकि कश्मीर राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ा रहा सके। प्रधानमंत्री को उन्होंने लिखा है कि संकट की घड़ी में पूरा देश आपके साथ है, यह हमले के बाद के दो दिनों में स्पष्ट भी हो गया है, साथ ही आपके नेतृत्व में साबित हुआ है कि भारत अत्यंत मजबूत राष्ट्र है तथा हर प्रकार की चुनौतियों को झेलने में सक्षम है, एक पत्र द्वारा प्रधानमंत्री से आग्रह किया गया है कि राष्ट्र हित में आपके इस निर्णय से देश एवं विशेष कर जम्मू कश्मीर की जनता को न्याय मिलेगा और यह समय की मांग भी है इससे समस्त भारत की जनता की भावनाओं का सम्मान भी होगा।

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