तुलसी विवाह कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त करें

तुलसी विवाह एक पूजोत्सव है जो तुलसी और विष्णु के विवाह का उत्सव है। कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाने वाला यह त्यौहार है, कहा जाता है कि भाद्रपद माह एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर राक्षस को मारा था और विपुल परिश्रम करने के कारण उसी दिन सो गए थे, अत: इसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। भाद्रपद एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक कोई भी माँगलिक कार्य विवाह आदि नहीं हो सकते थे, तुलसी का विवाह सम्पन्न हो जाने के बाद ही सभी माँगलिक कार्य होने की सम्भावना बनती है।

तुलसी एक पूजनीय वनस्पति है जिसका वृक्ष दो-तीन हाथ से ज्यादा लम्बा नहीं होता, यह दो प्रकार की होती है एक श्याम तुलसी, दूसरी तुलसी हरी पत्तीवाली, ब्रह्म वैवर्ण पुराण में तुलसी के नामाभिकरण का उल्लेख है कि नरा नायंश्च तांदू तुलनां दात्तुमक्षमा: नैन नाम्ना च तुलसी तां वदन्ति पुराविद: नर-नारी ने जिस वनस्पति को देखा, इसकी तुलना में ऐसी कोई भी वनस्पति नजर में नहीं आई इसलिए पुरातत्ववेत्ता ने उसे ‘तुलसी’ नाम दिया। तुलसी की पौराणिक एवम्लोक कथात्मक उत्पत्ति की कथा कुछ ऐसी है : समुद्र मन्थन के वक्त जो अमृत मिला उसके जमीन पर गिरने से तुलसी उत्पन्न हुई, जिसे ब्रह्मदेव ने विष्णु को अर्पण किया। हिन्दू धर्मानुसार धर्मध्वज नाम का एक राजा था उसकी पत्नी का नाम था माधवी, इस दम्पत्ति को एक कन्या रत्न की प्राप्ति हुई, जो सुन्दर थी, इसलिए लोग उसे ‘तुलसी’ कहकर पुकारने लगे, इस कन्या ने बदरीवन में विष्णु की प्राप्ति के लिए आराधना की, तब ब्रह्मदेव प्रसन्न हुए और उस कन्या ने ब्रह्मदेव को कहा,

‘‘पूर्वजन्म में, मैं तुलसी नाम की गोपी थी, मैं कृष्ण की अति प्रिय थी, एक दिन मुझे और श्रीकृष्ण को, राधा ने देख लिया, क्रोधावेश उन्होंने मुझे श्राप दिया कि ‘तू मानव योनि में जन्म लेगी ‘कृष्ण को इस श्राप से बहुत दुःख हुआ, पर उन्होंने तुलसी से कहा, ‘‘डरना नहीं, मानव जन्म में भी तू मुझे प्राप्त करेगी’’
यह कथा तुलसी के मुख से सुनकर, ब्रह्मदेव बोले इसी जन्म में ही तुम्हें विष्णु की प्राप्ति होगी पर उसके पहले तुम्हें शंखचूड़ की पत्नी बनना होगा, वह दैत्य भी पूर्व जन्म में एक गोपी ही था पर राधा के शाप से दैत्य जन्म को प्राप्त हुआ, पूर्व जन्म में उसे तुमसे प्रेम था, उसे इस जन्म में सफल करना है। बाद में ब्रह्मदेव ने तुलसी को षोड्शोपचार राधिका मंत्र दिया और उसका जाप करने को कहा, तुलसी ने ठीक वैसा ही किया, एक दिन शंखचूड़ मिलता है, उसने गांधर्व विधि से तुलसी का पाणिग्रहण किया और संसार सुख को प्राप्त किया। दैत्य ने देव लोक को पराजित किया, अत: सभी देव विष्णु के पास गए और कहा! उसकी पत्नी की पतिव्रता के कारण उस दैत्य का नाश नहीं होगा, जब तुलसी को पता चला कि आनेवाला वह व्यक्ति उसका पति शंखचूड़ नहीं है, तब तुलसी ने श्राप दिया कि अगले जन्म में तू पाषाण बनेगा। विष्णु ने कहा तुमने मेरे लिए तपस्या की थी, इसलिए शंखचूड़ बना, अब तुझे दिव्य रुप मिलेगा और लक्ष्मी की तरह मुझे प्रिय होगी। तुलसी का विवाह करना एक पूजोत्सव है जिसे कन्यारत्न न हो, वे तुलसी विवाह कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। तुलसी विवाह करने वाले दम्पत्ति को, पवित्र स्नान करके तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाकर, तुलसी एवम् शालिग्राम को पवित्र स्नान करवा कर, षोड्शोपचार से पूजाविधि सम्पन्न करनी चाहिए। मंगलाचरण पढ़कर तुलसी की एक शाखा के शालिग्राम को छुएँ, इस तरह से तुलसी शालिग्राम का विवाह किया जाता है, बाद में आरती मंत्र पुष्पाँजलि कर, ब्राह्मण को भोजन एवम् दक्षिणा दी जाती ह

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